'बाद' रुख्सत के, तेरे रोयेंगे
आंख 'आँसू' के, पोछे जाने तक-
मोह में ढलती, मैं नादान शब सी हूँ,
सच से वाक़िफ़ कराता, वो नेक भोर सा है-
दर्द मोह है, मोह में कैद इंसान खड़ा,
प्रेम सिर्फ सुकून है, जो इंसानियत से है, बना।-
तुम मोह भी
तुम मोक्ष भी
तुम सृष्टि हो
तुम दृष्टि भी
तुम हो निराकार
तुम ही सर्वदा साकार भी
तुम धीर हो गंभीर हो
तुम ही धरा पर नीर भी
तुम मोह हो
तुम मोक्ष भी
तुम सुखन के किल्लोल हो
तुम ही रूदन का चित्कार भी
तुम सृजन की नींव हो
तुम अंत का संहार भी
प्राण की विलासिता भी
तुम देंह के हो दीनता भी
तुम मोह भी
तुम मोक्ष भी
तुम कृत्य भी
तुम नृत्य भी
तुम धूरी धरा भी
तुम ही गगन गंभीर भी
तुम क्षितिज के इस पार हो
तुम ही क्षितिज के उस पार भी
तुम मोह भी
तुम मोक्ष भी ....।।-
" मोह "
एक बूंद बारिश कि चेहरे पर पड़ी ।
चेहरे से टपक हथेलियों पर गिरी।
मैं देख कर थोड़ी मुस्कुराई।
वो अपनी शैतानियों पर खिलखिला रही।
सूरज से बचने के लिये मुट्ठी में चली ।
उसके ताप से देखो कैसे है डर रही।
छुप छुप कर बड़े विश्वास से मुझे ताक रही।
घबराई हुई वो हाथों की रेखाओ में छुपी।
लेकिन वो तो बूंद थी , बूंद बन चली।
मुट्ठी से छूट कर हवा में घुली ।
वो तो क्षणिक थी , क्षण में चली।
उससे कैसी ये मोह मुझे है लगी।
जाने से उसके ह्रदय में पीड़ा हो रही
✍️रिंकी ऊर्फ चंद्रविद्या
-
न सुख में.,
न दुःख में.,
न मोह में.,
न माया में.,
ये बरसता है केवल"प्रेम "में..!
जो खर्च से न खत्म होए.,
न चोरी कभी चोरी होए.,
बेमोल ही खरीद ले ए"मुसाफिर".,
ये ही प्रेम धन तो साथ आना हैं.....!!
-
शीर्षक:- "ये ज़िन्दगी "
जीत है ये ज़िंदगी और हार अंत है नहीं,
सीखने का नाम है, ये ज़िंदगी, ये ज़िन्दगी.......
हिम्मतें हैं बस हजार और ठोकरों का अंत है नहीं,
परेशानियों का नाम है, ये ज़िंदगी, ये ज़िन्दगी......
नाव है ये चित्त मेरा और सागर अंत है नहीं ,
बहते रहने का नाम है, ये ज़िंदगी,ये ज़िन्दगी.......-
दूर तो अक्सर वो हुआ करते है जो "प्यार" नही "मोह" से बंधे हो।
साथ अक्सर वो हुआ करते है जो कहने को दो शरीर है पर रूह उनकी एक है।
क्योंकि जहा रूह का मिलन होता है वहा दूरियां और नजदीकियो का कोई महत्व नही रह जाता!!!
❤️-
न कोई छत्रछाया है
न कोई मोह माया है
बारिश से ज्यादा तो मुझको
तेरी यादों ने भिगाया है
-