मेरे हर जज़्बात को समझने वाली
मेरी हर बात को सुनने वाली
मेरे हर दुख को महसूस करने वाली
मेरे हर भाव को पढ़ने वाली
मेरी हर खुशी में नाचने वाली
"मेरी कलम"-
मेरे इश्क़ की शिकस्त में गिरफ्त
मेरी कलम का दरिया कुछ यूँ उमड़ गया
मानो अल्फाजों का एक समूह सा बन गया।
जो हमारी खैरियत पूछने को बेताब-सा रहता था,
आज वो भी काफिराना-सा बन गया।
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परेशानियों की फेहरिस्त
चाहे कितनी भी लम्बी हो
उम्मीदों का दामन कभी न छोड़ना
इक रोज़ मुकाम हासिल होगा जरूर
तुम चलना कभी न छोड़ना-
बिषय:-''इंसानियत से प्यार ''
तुम भी प्यार की तलाश करते हो ,
हम भी प्यार की तलाश करते हैं |
दुनियाँ की अलबेली जुस्तजू में,
हम तुम्हें आदर से आदाब करते हैं |
मज़हबी फजूल जंगों को छोड़कर,
हम इंसानियत से बेइनतिहाँ प्यार करते हैं |
हाँ भले ही मज़हब से हम हिन्दू हैं ,
फिर भी उर्दू से हम प्यार करते हैं |
बस उन लोगों से बहुत ही चिढ़ है हमें,
जो मज़हब के नाम पर इंसानियत को शर्मशार करते हैं
तुम भी प्यार की तलाश करते हो ,
हम भी प्यार की तलाश करते हैं ....-
फक़त रोशनी-ए-नज़र,फरमाइशी दिल...
रोशनाई-ए-क़लम आजमाईशी दिल....
तीरगी लिखती है वो ऐ!इश्फ़ाक़ मेरी!!-
बहुत बोझ है मुझपे मेरी लाचारी का.... (2)
पर फिर भी जिन्दा हूँ,
क्योंकि अभी हिसाब बाकी है अपनों की बफादारी का|-
हम आपके हमदर्द हमसफर बन चुके है...
आपके दिल की धड़कने ओर साँसो का
अहसास बन चुके है.......
यूं टाइम-पास न समझो हमे आप हम तो
आपके साथ रहने वाली परछाई बन चुके है...-
किसी न किसी को कभी-कभी
याद करना मेरी फ़ितरत में है
ओर हर किसी को हर रोज़ याद करना
मेरी आदत में है
भूलना नही चाहता में हर किसी को
क्योंकि एक दिन ये दुनिया ही भूला देगी
हर किसी को
इसीलिये याद कर लिया करो हर किसीको-