हम राज़-दार होकर इक राज़ भूल बैठे
दिल में छुपा के रक्खी आवाज़ भूल बैठे
देखा ज़रा सा जलवा हम इश्क़ के हुए तब
फिर जिस्म देख अपनी मुमताज़ भूल बैठे
सब हैं यहाँ मुहाजिर करनी पड़ेगी हिजरत
इक हुस्न के लिए क्यों आग़ाज़ भूल बैठे
जब से हुई मोहब्बत हम सबसे मुख़्तलिफ़ हैं
हम ख़ुद ही इश्क़ का अब अंदाज़ भूल बैठे
जब साथ हो इबादत सब कुछ मिलेगा 'आरिफ़'
किस राह चल दिए हम परवाज़ भूल बैठे-
कुछ देर यहाँ बैठो फिर दूर चले जाना
चाहत को मेरी करके मजबूर चले जाना
अब और नहीं होती हिजरत भी मुहाजिर से
तुम आज ज़रा होकर मग़रूर चले जाना
हर राज़ छुपाया है हर रोज़ की चाहत का
अब चाह नहीं दिल को मंज़ूर चले जाना
जब इश्क़ तुम्हें होगा दिल ज़ोर से धड़केगा
हर साँस में चाहत है भर-पूर चले जाना
आवाज़ लगाना तुम 'आरिफ़' को मोहब्बत से
वो इश्क़ से कर देगा पुर-नूर चले जाना-
कोई इज़्ज़त कोई नफ़रत करता है
ज़िन्दगी से फिर भी हिजरत करता है
सब मुहाजिर बन के आए हैं यहाँ
माल-ओ-ज़र की कैसी हसरत करता है
इश्क़ सबका चंद सिक्कों में बिके
बे-वफ़ा बन तू क्यों हैरत करता है
बद-नसीबी पास सब के है यहाँ
कम किसी की तू ज़रूरत करता है
दिल में इसको रख के इक दिन इश्क़ कर
कुछ तो 'आरिफ़' भी शरारत करता है-
तुझे देखने की तलब कुछ इस कदर हुई है दिल को कि
नजरें तेरे शहर की मुहाजिर बनने को तैयार है
-
ना- मालूम है खुद का ही,ना-होशोहवाश में हूँ।
"मुहाजिर- ए -इश्क" तेरा , हुआ हूँ जब से।।-
इस जिंदगी ने मुझे कुछ इस तरह से तन्हा कर दिया है,
कि अब मै अपने घर भी लौटता हूँ किसी मुहाज़िर की तरह!-
बड़ी शिद्दत से निभाया था,"सफर-ए-इश्क़" अब तलक,तुमने!
फिर एक पल में ही क्यों हमें "मुहाजिर- ए-इश्क" बना दिया।।-
ऐ बारिश! ......
मेरे शहर में आजा तू मुसाफ़िर की तरह ,
तू तो गायब हो गई है मुहाजिर की तरह ,
गर्मी से तड़प रहा हूँ मैं काफ़िर की तरह ...-
तेरे दिल में जगह बनाने की तमन्ना में एक सदी गुजर गयी ......,
उस इंतज़ार में मैं सिर्फ़...... मुजाहिर बनकर रह गयी.......!!
😞💔-
सब मुहाजिर है यहां कुछ वक्त ठहर कर जाना है
फिर भी ना जाने क्यों लोग एक दूसरे के दुश्मन है यहां-