माना मंजिलें नहीं मिलती रूह से मुहब्बत करने वालों को,
कोई रहनुमा को पत्थर और रहगुज़र को ख़ुदा मान लो!!-
क्यूँ इतने उसूल बना रखे तुमने मुहब्बत में ,
कि,वो भी अधूरें इश्क़ की ख्वाहिश करती है।।-
किसी को हर पल याद करना इबादत से कम नहीं..,
हाँ!तुझे लिखना मेरी मुकम्मल मुहब्बत से कम नहीं।।-
सुना है, मुहब्बत खुदगर्ज होती है और....
कहते है,जो सच्ची है, वो अधूरी रहती है!!-
कुछ तो नया खास ही पाया है तू
यूँ ही नहीं कोई किसी की बेशुमार मुहब्बत ठुकराता है 😟-
तुझे ढूँढती नज़र है.. नजारों में रहकर
इक तेरी ही ज़ुस्तजू है.. हज़ारों में रहकर,
पहले ख्वाइशों की सरहद.. तारों तक थी
अब चाँद की तलब है.. सितारों में रहकर,
मुहब्बत की कश्ती.. सोचे.. बीच भँबर में
कितना सुकूँ था.. ए ज़िन्दगी
तेरे किनारों में रहकर,
कोई तस्वीर.. बनाकर ही रख ले मुझे तू
मैं गुजार दूँगा.. ताउम्र दीवारों में रहकर,
उफ़्फ़.. तेरे तस्व्वुर में... कुछ यूँ लगता है
के जैसे.. हवा ख़ुश है गुब्बारों में रहकर..!-
आंसू ही है जो जीवन भर हमारे साथ रहते है
दुख हो या सुख भावनाओं के रूप में बहते है
कभी सोचा न था इन आँखों से निकले
आंसू एक दिन व्यर्थ हो जाएंगे
अब तो यूँ लगने लगा है
की दिल तड़पता है
तो आंसू निकल
ही जाते है
हर दुख सह जाऊंगी पर आँसुओं को कैसे समझाऊंगी
लोग पढ़ लेते है मेरे आंसुओ से मेरा दर्द ना चाहते
हुए भी बयान कर जाते है मेरी मुहब्बत
की दास्तां जहां बहाये थे कभी
मैंने अपने बेशुमार
आंसू.....
कल तक इन आँखों से आंसू न गिरने दिया था
तुमने आज उन्ही आंसुओं से सौदा करने
चले ना जाने कहाँ से लाते हो तुम
इतनी नफरत की तुमने खून के
आंसुओं को भी पैसों में
तोल दिया...-
कुछ कर अब मेरा भी इलाज ऐ हकीम-ए-मुहब्बत...
हर रात वो याद अाती हैं और मुझसे सोया नहीं जाता.!
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साँस आधी सी है.. ना धड़कन पूरी है
जिये जा रहे हैं.. जाने क्या मजबूरी है,
आईने का अहम देखकर हँसते हैं पत्थर
के पराये अक्स पे क्यूँ इतनी मगरूरी है,
चले थे हम यह सोच कर खुशियाँ पाने
के चाँद की तो बस.. रातभर की ही दूरी है,
पऱ मिलों सफ़र करके भी पाया नहीं उसे हमनें
मुहब्बत की शायद.. यह राह ही अधूरी है,
देखकर अंधेरे में जुगनू यह एहसास हुआ दिल को
के कमबख़्त.. जीवन में जलना भी लाज़मी है..
...बुझना भी ज़रूरी है!-