छुए तो नहीं कभी किसी के पाँव माँ-बाप के अलावा लेकिन..
वो जो पायल बांधने को बोलेगी तो झुक जाऊँगा मैं..!-
वक़्त निकाला करो अपने माँ - बाप के लिए भी..
जिम्मेदारियों को पूरा करना ही सब कुछ नही होता हैं..-
मैंने देखा है
'प्रेम' में
'निवाला' तोड़ते हुवे
'प्रेमी' को
'प्रेमिका' के लिए
कैसा होता अगर
'प्रस्तुति' का ये भाव
'प्रस्तुत' होता
'उत्पत्ति' के
'माध्यम' को
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जब किसी के माँ-बाप पे मुसीबतों का पहाड़ पड़ता है,
तब मैंने छोटी उम्र में बच्चों को समझदार बनते देखा है।।-
ईंट-ईंट जोड़कर जो घर बनाया था ,
वो बाप ही बेघर हो गया ।
जो कभी कूचा हुआ करता था ,
अाज वो ही शहर हो गया ।
जो सिर्फ आँखें दिखाने से डरता था ,
अब वो बेटा भी निडर हो गया ।
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फटे कपड़े अपने हर बार रफ़ू कराते है,
में चाँद तारे भी माँगु माँ-बाबा ले आते है।।
खुदके सुख-दुख का पिटारा वो मुझसे छुपाते है,
चोरी से मेरी झोली में हज़ार खुशियां भर जाते है।।
खुदके लिए कुछ नही,दुआएँ भी मेरे नाम कर आते है,
मेरे लिए किस्मत क्या रब से भी लड़ जाते है।।
यह सब करना एहसान नही वो अपना फर्ज़ बताते है,
इसलिए अपने वालिद-वालिदा में मुझे भगवान नज़र आते है।।-
माँ-बाप घूम रहे हैं, जिनके बेघर।
वो भी जा-जा, पूज रहे हैं पत्थर।।-
सोंचा मैंने आज....
करू तलाशी चुपके से,
उनके कमरे की आज,
आख़िर मुझे भी तो पता चले,
छुपा कर तकलीफों को,
रखते कहा हैं माँ बाप...😊😊-
जिसकी लाठी भी तुझे अब बोझ सी दिखाई है,
याद कर,
काँधे पे बैठा के तुझे उसने ही दुनियाँ घुमाई है।।-
बहुत ढूंडा ताकी थोड़ा तो चोरी कर सकूँ,
पर ना जाने माँ बाप ने वो दुख तकलीफ़ का पिटारा कहा छुपा रखा है।।
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