इंसान के हाथों की बनाई नहीं खाते
हम आम के मौसम में मिठाई नहीं खाते-
है कौन यहां पर वीर जिसे
मैं दिल की बात बता पाऊं
है किस प्राणी में धीर जिसे
मैं मन की पीड़ा गा पाऊं
कविता अनुशीर्षक में पढ़ें
- सुप्रिया मिश्रा
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प्रिय ठलुआ-वृंद!
मनुष्य-शरीर आलस्य के लिए ही बना है। यदि ऐसा न होता, तो मानव-शिशु भी जन्म से मृग-शावक की भांति छलांगें मारने लगता, किंतु प्रकृति की शिक्षा को कौन मानता है।
निद्रा का सुख समाधि-सुख से अधिक है, किंतु लोग उस सुख को अनुभूत करने में बाधा डाला करते हैं। कहते हैं कि सवेरे उठा करो, क्योंकि चिडियां और जानवर सवेरे उठते हैं; किंतु यह नहीं जानते कि वे तो जानवर हैं और हम मनुष्य हैं। क्या हमारी इतनी भी विशेषता नहीं कि सुख की नींद सो सकें! कहां शय्या का स्वर्गीय सुख और कहां बाहर की धूप और हवा का असह्य कष्ट!-
इंसानों का ये दौर चल रहा हैं ,
मन में कुछ और
तो दिल में कुछ और चल रहा हैं |
खरीदी और बेची जा रही हैं ,
लोगों की जिंदगी यहाँ |
ये कल़युग नहीं
महाभारत का भाई और भाई में युद्ध चल रहा हैं |
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जब माँ उसे कर देगी त्याग
जात धर्म हो जाए अभाग,
जो अकुलाए उस कर्ण को
उसके सीने स्वर्ण को
न मिले आदर न वास,
कर्ण किससे रखे आस?
सूत पुत्र होने पर जो
वो हास्य, घृणा का पात्र हो
तो दुर्योधन आएँगे
कर्ण कौरव होते जाएंगे।
कर्ण कौरव होते जाएंगे।
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कर्ण
वो था अति बलशाली,
अति अभिमानी,
अति प्रकर्मी,
महा दानी,
परम वीर,
जान से बढ़कर थी दोस्ती,
शान से निभाही दोस्ती,
मन,कर्म से की दोस्ती,
उस वीर की दोस्ती,
मां को दिया वचन भी निभाया,
दोस्ती का धर्म भी निभाया,
हमेशा श्रापित नाम पाया,
गया जब छोड़ काया,
तब पता आया,
एक भाई गया दुनियां को छोड़ ।।।-
🙏🙏🙏राधे कर्ण🙏🙏🙏
तीनो लोक के भार वाले रथ को हिला गया,
वो कर्ण था पराक्रम दिखा गया,
अकेले ने पूरे पड़ाव को सेना सहित धूल चटा गया,
वो कर्ण का सोर्ये पठाका लेहरा गया,
पूरे पांच पड़ाव को अकेला ही हरा गया,
वो राधे कर्ण था बल दिखा गया,
यू तो अनेक योद्धा (पड़ाव) को जीवन उनका लोटा गया,
मगर अपनी बारी में निहत्था ही सर कटा गया,
वो कर्ण था विरो की बाती अपना कर्म कर के चला गया ।।।-
कर्ण
दान में मागने आया जब इन्द्र छल के कवच-कुंडल के रूप में प्राण था,
बिना कुछ सोचे दिया उसने इन्द्र को दिया दान था,
ऐसे वो सूर्य अंश बना महान था,
रण में युद्ध करने जब सब त्याग गया था,
तो देखा अर्जुन की रक्षा के लिए सामने खुद भगवान था,
अर्जुन के रथ पर बैठा अंजलि का लाल था,
वैसे तो कर्ण शक्तिमान था,
मगर सामने खुदा को देख रखा उनका मान था,
कुंती मां को दिया कर्ण का वचन पांडवो के साथ था,
नहीं तो कब का कर्ण ने किया समाप्त वो रण था,
कोरवों के पक्ष में एक वहीं अंतिम चरण में सबसे बलवान था,
भीम जैसे योद्धा को दिया कर्ण ने दिया जीवन दान था,
वासुदेव और अंजलि का लाल अर्जुन के रथ पर सारे जगत के साथ था,
तभी तो अर्जुन को अभिमान था,
वरना कर्ण के सामने कहा अर्जुन में इतना दम था,
अपने रथ का पहिया निकालने बैठा जब कर्ण था,
तभी अर्जुन में दम था,
नहीं तो कर्ण कहा किसी के कम था।।
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कर्ण
जब तक है साथ,
दुर्योधन की है आस,
मित्र कर्ण है अभी पास,
तो क्यों गबराऊ मैं नाथ,
करेगा कर्ण शत्रु का नाश,
जब तक मित्र कर्ण तेरा है हाथ,
नहीं मरूंगा मैं पड़ावों के हाथ,
जो कुछ हो गया तेरे को यार,
सर झुका कर तुझे नमन करेगा ये संसार,
तेरे जाते ही आऊंगा मैं भी तेरे पास,
जो तू नहीं तो क्या करूंगा मैं राज,
न जात देखी मैंने,
न देखा धर्म,
ए मित्र कर्ण,
साथ है वासुदेव तो है अर्जुन,
नहीं तो अकेला मेरा मित्र मिथुंजय राधे कर्ण।।।।।-