महर्षि दधीची
आगे का अनुशीर्षक में
प्रस्तुत किया है-
अंतर्यामी परम ज्ञानी पूज्य महर्षि को श्राप देने की कला सस्ते में मिल गई होगी !
उन्हें अहल्या के साथ हुए अन्याय से किया गया छल नहीं
दिखा पता नहीं क्यों!-
क्या लिखूं उनके बारे मे
जिन के बजह से लिख पा रही हूँ मे,
मेहनत मेरी शिर्फ नही दुआये उन गुरु का भी है
जिन के बजह से दुनिया मे इतना कुछ पा रही हूँ मे।।-
कामयाबी कभी मंज़िल नहीं होती हैं,
कामयाबी एक सफ़र होती हैं,
जिसका कभी अंत नहीं होता हैं...-
समय का चक्र भी अनोखा है,
कभी भी पलटी मार जाता है।
कल तक जो नाम शीर्ष पर शुमार था,
उसका नामोनिशान तक मिट जाता है।
जो कभी ईमानदारी की मिसाल था,
आज वो अपने कहे से मुकर जाता है।
जिसे सब कुख्यात डाकू बोलते थे,
आज उसे ही महर्षि कहा जाता है।
समय पर कभी भी इतराना नहीं तुम,
ये कहानी की कहानी पलट जाता है।-
बोलने के पूर्व जो विचार नहीं करता है, वह अच्छा नहीं बोल पाता है, उसकी वाणी सामनेवाले को सुख नहीं पहुँचा पाती है।
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हिन्दू पुनर्जागरण के मुख्य निर्माता जो,
वेदों का प्रचार-प्रसार करने वाले वो,
वेदों की ओर लौटो का नारा देने वाले जो,
आधुनिक भारत के महान चिन्तक, आद्यनिर्माता वो,
एक संन्यासी जिनका असली नाम मूलशंकर जो,
पिता करशनजी लालजी तिवारी माँ यशोदाबाई वो,
संस्कृत, वेद, शास्त्रों व धार्मिक पुस्तकों के ज्ञाता जो,
वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि मानने वाले वो,
दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज की संस्थापक जो,
हरिद्वार के कांगड़ी में गुरुकुल के संस्थापक वो,
अपने दर्शन से चार स्तम्भ के प्रतिपादक जो,
कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य, सन्यास वाले वो,
श्रेष्ठ ओजस्वी संत, राष्ट्र पितामह कहलाते जो,
स्वराज्य और स्वदेशी का सर्वप्रथम मन्त्र प्रदाता वो,
आर्य समाज के संस्थापक, समाज-सुधारक जो,
अखंड ब्रह्मचारी महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती वो।-
महर्षि जी की ज्ञानवर्षा से
नवचेतन का अंकुर फूटा
निखर गया मैं मन से तन तक
मोह माया का बंधन छूटा
TM का बिगुल बजा जब,
दृढ़ता का संचार हुआ
जनमानस के हृदयपटल पर,
TM का प्रसार हुआ।-