मेरी और खुदा की बस इतनी सी मसाफत है,
जितनी दिल की धड़कन तक समाअत है।-
कुछ रिश्तों में मसाफ़त है, तो है कुछ शहरों की मसाफ़त।
गर ख़त्म कर भी लें शहरों की मसाफ़त, तो रिश्तों का क्या?-
2122 1122 1122 22
अब नहीं दिल से मेरे तय ये मसाफ़त होगी,
तू तसव्वुर में नज़र आये तो राहत होगी।
चंद अश्कों को निग़ाहों में छुपा रख्खा है,
जाने तन्हाई में कब इनकी ज़रूरत होगी।
वो नहीं आया मेरी ख़ैर भी लेने अब तक,
उससे मत कहना उसे और निदामत होगी।
मेरी क़िस्मत में अगर ख़ार ही लिख्खे हैं तो,
अब मुझे फूलों पे चलने में अज़ीयत होगी।
इस जहाँ से तू मेरी रुख़्सती का ग़म मत कर,
ख़ैर-मक़्दम को हमेशा मेरी उल्फ़त होगी।-
दरमियां-ए-मसाफत,अब सताती नहीं
तू हासिल जो है, ख्यालों में ही सही-
ज़िंदगी की मसाफ़त तय करते-करते आ जाती है जिंदगी की शाम
हो जाता है ज़िंदगी का क़िस्सा उस दिन तमाम-
मुझे तेरी मसाफ़त का गम हो क्यूँ,
तेरी चाहत पे आज भी मेरा इख्तियार है।-
मसाफत मंजिलों की जब सामने रखी थी मेरे
आसमां कांधों पर रखा था ज़मीं ठोकर पर थी मेरे-
ऐसा कोई मक़ाम बता दे
ये मेरे हम-नफ़स
जहाँ हिज्र की मसाफ़त कम हो जाये
और साथ हमारा मुक़म्मल हो जाये-
तुझें आपने की चाह में कितनी मसाफ़त तय किया था हमने।
ना तुम मिले ना वहां फ़िर वापस जाना हो पाया कभी मुझसे।।-