हर जगह एक औरत को औरत ने ही गिराया है
मिलती जो शौरत औरत को उसे मिट्टी में मिलाया है
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मोहब्बत की थी कलम से अब यारी हो गई
इश्क़ न मिला ... read more
ताज़ा-ताज़ा सुब्ह के अख़बार की तरह
बेचा गया उम्मीदों के बाज़ार में हर बार की तरह
हमने तो बस चमन से हसीं फूलों को चुना था
ये कौन सा गुल है जो चुभ रहा है ख़ार की तरह-
दिल ने चाहा तो बहुत पर मिला कुछ नहीं
जीस्त में टूटी हसरतों के सिवा कुछ नहीं
सौगात-ए-इश़्क ने हमको दिया ही क्या है
ज़ख़्म ही ज़ख़्म हैं जिनकी दवा कुछ नहीं
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बिस्तर पर मेरे उन्होंने गुलाब बिछा दिए हैं
इन ऑंखों में मेरी हज़ारों ख़्वाब सजा दिए हैं
जो करते थे कभी बे-पनाह मोहब्बत हमसे
आज उन्होंने ही हम पे हज़ारों इल्ज़ाम लगा दिए हैं-
इक तेरी मोहब्बत के ख़ातिर गुनाहों की सज़ा काट लेंगे
अपनी खुशियां तेरे नाम करके हम सारे तेरे ग़म बांट लेंगे
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मेरी मोहब्बत को भी उनकी झूठी मोहब्बत ने मारा
जहां कद्र नहीं थी जज़्बात की हमने भी दिल वहीं हारा
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मोहब्बत को हमने तो उसकी इबादत समझा था
क्या ख़बर थी हमें एक दोस्त वो बंदा बेवफ़ा था-
इक तेरी याद में लिखे हमने कई तराने थे
कितना खुशग़वार मौसम था कितने दिन वो सुहाने थे-
दिल और जान देकर जग हंसाई सही हमने
ख़्वाहिशों को पूरी कर मुंह मोड़ लिया तुमने-
तेरी मोहब्बत को पाकर निखर गया हूॅं मैं
आकर देख ले तू इक दफ़ा कितना संवर गया हूॅं मैं-