सोच के बर्नर के, छिद्रों को,
जले ईर्ष्या की कालिख के,
अणु- अणु कण,
अवरुद्ध करते रहते हैं, निरंतर !
देखते-बूझते भी,
हम, मन के स्टोप की
तुलना रूपी टंकी में भरे, इंधन -
‘कमतर भाव’ को
बेहतर, साबित करने की चेष्टा में,
पूरा ज़ोर लगा, पंप करते रहते हैं..
ईर्ष्या का गैस, भरते रहते हैं....
और जब स्टोप, यानी की मन,
ईर्ष्या को अंदर नियंत्रित
नहीं कर पाता तो ...
फट पड़ता है!
नतीजा ...विनाश...-
मंसूख तेरी अब हर साजिश है,
माना कि ख्वाहिशें अभी म्यूट है,
संभाल न पाओगे खुद को तुम भी,
मत्सर तेरी, मेरी जीत का सबूत है।-
मंगल मंगल मंगलमय हो सब
शिव शिव शिवमय हो जग सारा
सबका दुःख संताप हरो शिव
मंगलमय हो संसार हमारा
मद-मत्सर से हमें बचा लो
ईर्ष्या-द्वेष न रहे हृदय में
शिवमय शिवमय जग हो जाये
शिव शिव शिवमय हम हो जाये-
राम नाम मे शक्ति अद्भुत से रावण ने भी मानी
देकर सौगंध राम की पत्थर तैरा दिये पानी मे
!! जय जय श्रीराम!!-
मत सदृसः कोपि न भवति - मात्सर्य दोष
कई बार परमार्थ के राह पे चलने वालों को भी
आजाता है,मात्सर्य दोष जिस मे होता है।
वे असत्य को भी सत्य दिखाने की कोशिश करता है ।मात्सर्य दोष कोढ़ है,मन की कुटिलता ही मात्सर्य दोष है।
जिस मे मात्सर्य नही है वे स्वयं को जानने की कोशिश करता है -पर मे नही फंसता..!!-
मनात राग तिरस्कार मत्सर ..
जरासाही क्षोभ नसावा.
मागील वर्षाप्रमाणे या वर्षीही मित्रांनो,
तुमचा लोभ असावा.
नवीन वर्षाच्या खूप खूप शुभेच्छा !-