तुम रूठ गये थे जिस उम्र में खिलौना न पाकर,
वो ऊब गया था उस उम्र में कमा कमा कर...-
मैंने बचपन में बचपन को देखा नहीं
क्या मेरे हाथ खुशियों की रेखा नहीं
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जी हाँ एक बचपन यहाँ भी पल रहा
जिसके ना सपनों का पता ना अपनो का
सह्रदय धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ
कैलाश सत्यार्थी जी को
और मलाला यूसुफजाई जी
को जिन्होंने वास्तव में आज
हमारा बालदिवस सार्थक किया।
पढि़ए एक बाल का दर्द अनुशीर्शक में उसकी जुबानी..-
⚒️⛏️...हां, मैं मजदूर हूं...⛏️🛠️
रोटी की तलाश में
उजाले की आस में
तपता हूं हर रोज...
खुद बेघर होकर भी
आशियाने तेरे बनाता हूं
दिनभर कड़ी धूप में जलकर
मिट्टी को सोना बनाता हूं...
तेरे घर में भोजन के ढेर पड़े हैं
मेरे यहां सूखी रोटी के लाले पड़े हैं
यह तो किस्मत की बात है साहब
मेरे पेट भूखे हैं और तेरे लिए मेले लगे हैं...
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जब हालात हो भूखे मरने के
कोई चारा ना हो सिवाय कमाने के
शौक दम तोड़ देते है बचपन में ही
जब घर में नही हो दाने खाने के...।-
वो मुफलिसी में जी रहा है
फिर भी अपना ईमान नहीं खोया
वो मेहनतकश मजदूर है
उसने अपना स्वाभिमान नहीं खोया।-
तुम रूठ रहे थे जिस उम्र में खिलौना ना पाकर
मैं अपना घर चला रहा था उम्र के उस पड़ाव पर...।-