गुज़र जो गये तुम 'हवा' बनके कोई
लगा 'राहतो' का कहीं छूटा मंज़र-
यकीनन मंजर को गहरा समझ समेटा इस कदर की,
एहसास पंखुडी तरह बिखर गए....-
कुछ यूँ भी मौत के मंज़र देखें है,
अपनों के हाथ में ही जब खंजर देखें है।।-
रख हौसला वो मंजर भी आयेगा
प्यासे के पास चल के समुन्दर भी आयेगा..
थक कर न बैठ ऐ मंजिल के मुसाफिर
मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आयेगा..-
सराहना बरकरार है आज भी मगर होशियारी जारी है,
मंजर बदल गया है उनका मगर पहरेदारी अभी भी भारी है।-
सुनाे...ये जाे छाेटी सी ही उम्र में तुम,
जिन्दगी के तमाम बड़ें मंजर देख रहे हाे.!
हाँ ये, खुशनशीबी हैं तुम्हारी जाे तुम,
मुस्कुरातें चेहरें के पिछें खंजर देख रहें हाें.!!-
मैं पतझड़ बुहार दूंगी
हर दरख़्त संवार दूंगी
तुम आओ तो सही
मैं बसंत उधार लूंगी।।-
उस से बिछड़ जाने का मंजर आया तो था
दिल तक 'नफ़रत का खंजर' आया तो था
'मोहब्बत' थी जो दिल में 'ज़िंदा' रही साहेब
आंखों तक अश्कों का समुंदर आया तो था-
जब माँ-बाबा को दुनिया की हर खुशी मिल जाये,
और वजह तुम हो,
सोचो वो मंजर कैसा हो!
जब देश के लिये कुछ कर गुजरने का मौका मिल जाये,
हर किसी को अभिमान तुम्हारा हो,
सबका फक्र से नारा हो,
ये माटी का लाल हमारा है,
वो भी क्या मंजर हो!
सारे सपनो को सच कर,
खुद आत्मविश्वास से भरे हुये,
ह्रदय मे करूणा का भाव हो,
कितना सुखद वो मंजर हो!
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