महाभारत के भीष्म पितामह के ऊपर एक छोटी सी कविता
कृपया कर के पढ़िएगा
🙏🙏🙏-
आज इस नए दौर की महाभारत में
जनतंत्र का अभिमन्यु बचेगा क्या?
इस तरह के कपट-युद्ध में
मारा ही जाएगा जनतंत्र का अभिमन्यु भरी दोपहरी,
चलो हम सब मिल-जुल कर सोचें कि
कैसे बचाई जाय अब इस जनतंत्र की साख
आज इस रण-भूमि में सूर्यास्त होने के पहले ही।-
कुछ बेपरवाह अरमानों ने,
राहों पे हमको भेजा है।
मंज़िल पाने की ललक लिए,
हिम्मत ने हमें सहेजा है।।
दुःख-दर्द के उड़ते तीरों से,
सीना जो छलनी होना है।
अब तीरों की शय्या पर तो,
हर भीष्म को एक दिन सोना है।।-
सखा........
मैं धीर धरा सी थी
तुम विस्तृत नभ थे
प्रेम तुम्हारा अकिंचन
अग्नि सा ये भाव मेरा
जल सा जलजल ये परिधि
पवन सा ये व्यक्तित्व तुम्हारा
कैसे तोडूं अपने भीष्म वंचना को
सखा लो आज लिख दी एक पाती मैंने
पंचतत्वों को मैंने दी विदाई एक कागज़ में लपेटकर-
भीष्म ने प्रतिज्ञा ली
आजीवन 'ब्रह्मचर्य' की
सिंहासन 'त्याग' की
हस्तिनापुर-राज्य 'रक्षा' की।
फिर उसी प्रतिज्ञा ने होने दिया
अम्बा का 'मर्यादा - हनन'
पांचाली का 'मान-हनन' और
अंततः कौरवों का 'कुल-हनन'।
कदाचित 'प्रतिज्ञा' का
किसी महिला की
'मर्यादा' से ऊपर होना
कर देता है उसे 'शापित'।।-