काश ऐसा भी होता की मेरी मंज़िल मिल जाती,
अगर मंजिल मिल जाती तो फिर बात ही क्या रह जाती,
काश ऐसा भी होता पूरा सफ़र तय हो जाता,
सफ़र तय हो जाता तो फिर रास्ता ख़तम न हो जाता,
काश ऐसा भी होता के मैं आसमान छू सकती,
आसमान छू सकती तो फिर ज़मीन पर क्यों रहती,
काश ऐसा भी होता के मैं चांद में खुद को देख पाती
खुद को देख पाती तो फिर आयना क्यों निहारती,
काश ऐसा भी होता जो सपना देखा है वो पूरा हो जाता,
पूरा हो जाता तो फिर आंखों को सुकून न आ जाता ।
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