"""भावार्थ (हरिगीतिका मुक्तक)"""
हैं प्राण रूपी सुख सृजक, सह दुख निवारक ब्रह्म वो
हैं देव रूपी तेज कर्ता,,,,,,,,,,,,, पाप नाशक ब्रह्म वो
अंतःकरण में हम उन्हें,,,,,,,,,,, धारण करें उत्तम बनें
निज बुद्धि को सन्मार्ग दें,,,,, हैं शुद्धि कारक ब्रह्म वो।।-
शब्दांनी शब्दांशी घट्ट असावे
प्रीतिचे फुल सदा उमलावे..
प्रेमाचा सडा शिंपत जावा
मनात विलगुन कायम रहावा..
सोबती असलो तर आठवण तर येतेच
जरी गेलो दुर तर आपली आठवण सदा असावी..
शब्दांचे नाते इतके गोड असावे की
मुंग्याची रांग ही अफाट असावी..
शब्दांतली जादू समजावी सर्वा
न उमजू काही कोणा कधी...
तुझे शब्द ठेव चालू तु
प्रेम होईल सृष्टीलाही तुझ्या शब्दांवर बघ...-
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।
-कबीरदास-
जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान ।
जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण ।
-कबीरदास-
धूरि भरे अति शोभित श्याम जू, तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी।
खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनिया कटि पीरी कछौटी।।
वा छवि को रसखान विलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी
काग के भाग कहा कहिए हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी।।
ये कविता है रसखान जी की याद में उन्ही की रचना आप लोगो के सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हू।-
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ।
-कबीरदास-
त्याग मे है हमारा ही स्वार्थ
त्याग का समझो भावार्थ
हमारा ही होता भला
गर करो निस्वार्थ...-
पहले शब्दों से भावार्थ निकलते थे..
अब भावों से शब्दार्थ बनते है..
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अब जिश्म मिलते है यहाँ इश्क़ के नाम पर ग़ालिब,
वो जमाना और था जब नज़रे मिला करती थी इश्क़ में अक्सर!!-
शब्द शब्द का अर्थ निकालते हो ,
बस पढ़ते हो कड़वे शब्दार्थ को
व्यर्थ में ही अपनी बुद्धि दौड़ते हो,
तुम समझते नहीं अनकहे भावार्थ को।-