ज्योति "दर्पी"   (ज्योति 🖤)
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Joined 3 May 2019


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ये खामोशी.......

जाने कितनी बातें ,ख़जवाइशें, जज़्बात, एहसास छुपा लेती है

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ये कैसा पड़ाव आया हैं जीवन में ,जहां
भीड़ भाड़ और शोर गुल से
एकांत में रहना बेहतर लगता हैं
कुछ बोल के साबित करने से
खामोश रहना बेहतर लगता है

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उदासीयों ने है घेरा ,
एक दर्द सा है आँखों में सजा ,
तुम पास नहींं इस बरसात में, और
वादियां सुना रहीं चाहतों का मज़ा ।

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इश्क़ अपना मुस्कुराए सजना तेरे संग संग यहां
तुझे लेकर बाहों में भूल जाऊं फिर मैं सारा जहां
हैं तुम्हे इस गुजरते दिसंबर की धुंध का वास्ता
मिलने चले आओ,हृदय की व्यथा की जाए ना बयां।

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रातों में जग कर सुबह करना
खुलीं आँखों से ख़्वाब देखना
और खुद से थक जाये तो फिर
दिवारों से बाते करना.......
कुछ यूँ ही बेहिसाब सी है आजकल
" जिंदगी "

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तेरे प्रति मेरी चाहतों को
तृप्ति नहीं मिलती
मरी हुई इन इच्छाओं को
मुक्ति नहीं मिलती
रूह बेचैन हैं आज भी
मिलन के लिए ,पर
टूटी हुई उम्मीदों को
शक्ति नहीं मिलती!!

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चलो आज एक उसूल बनाते हैं
*जो जैसा है उसे वैसा ही अपनाते हैं*
क्योंकि किसी को बदलने की कोशिश करोगे
तो नुकसान अपना ही होगा ..✍

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इश्क़ अपना मुस्कुराए सजना तेरे संग संग यहां
तुझे लेकर बाहों में भूल जाऊं फिर मैं सारा जहां
हैं तुम्हे इस गुजरते दिसंबर की धुंध का वास्ता
मिलने चले आओ,हृदय की व्यथा की जाए ना बयां।

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वादा तो नहीं करूंगी कि मैं तेरा साथ उम्रभर निभाऊंगी,

जब तक सांसे चलेंगी मेरे हमसफ़र तुम्हारी कहलाऊंगी।

जीवन के हर मोड़ पर तुझे इसी चाहत से गले लगाऊंगी,

उम्मीदों का दामन थामे तेरे साथ ही अपने कदम बढ़ाऊंगी।

तुम मुझे देख कर मुस्कुराना, मैं तुम्हारा दर्पण बन जाऊंगी,

तुम्हारा साया बनकर साजन मैं अपना पत्नी धर्म निभाऊंगी।

तुम बस मुझको समझ लेना बाक़ी मैं सबको समझ जाऊंगी,

हर सुख दुःख में हिस्सेदार बनकर तेरी अर्धांगिनी कहलाऊंगी।

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अस्तित्व है विराट तुम्हारा
तुम्हें शब्दों में क्या गढ़ूं मैं मां,
मैं शब्द महज़,तुम पूरी भाषा हो
तुम्हारी ही तो रचना हूं मैं मां ..!

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