अजीब सी सज़ा देकर बैठे हो
चुप बैठे हो
तुम्हें अच्छा नहीं लगता अगर हमसे बात करना
तो इतने भी क्यों क़रीब बैठे हो-
उसने अपनी पलकें झुका ली थी आखिरी साँस पर
और हम पागल ये मान बैठे कबूल हैं हम उसे-
इतनी भी अदा से तुम न मुस्कराया करो क़ी ,
हमें पता भी ना चले और हम मरीज-ऐ-दिल बन बैठे ।-
बहुत फिक्र है उसकी ?
आंखों में सपने सजाए बैठे हो ।
बिन समझें उसको !
तुम अपना बनाए बैठे हो ?
तुम भी क्या गज़ब करते हो दोस्त
टूटने के लिए तुम तो तैयार बैठे हो !!-
स्त्री, शब्द को जब हम उच्चारण करते हैं, हर बार "ईश" अर्थात ईश्वर को याद करते हैं। ये कोई इत्तेफाक नहीं! बोलकर देख सकते हैं।
वहीं यदि हम औरत शब्द का संधिविच्छेद करें तो,
"औ" अर्थात पाक / पवित्र!
"रत" अर्थात प्रेम/ प्रीति / स्नेह!-
इश्क का दीप हम उनके संग जला बैठे
वो तो हमे अपने दिल से निकाल बैठे।
पेड़ो में पंक्षी डेरा डाल के हैं बैठे
वो तो पेड़ों की डाल काट बैठे ।
प्रेम कहानी का ,उनके संग हम किरदार निभा बैठे
वो तो पिक्चर रीलीज़ होने से पहले ही,आँखों मे ताला लगा बैठे।
कहानी हिट हुई न हुई,हम दिल मे ब्लॉकबस्टर बना बैठे
वो तो, कहानी का हर पन्ना मिटा बैठे।
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जरा धीरे से साँस लेना तुम ,
तुम्हारे दिल की नोक पे बैठे है हम ।-
न जाने कितने लोगो को जीत लिया
न जाने कितने दिलों पर राज किया
न जाने कैसा नसीबा था अपना
जो दिल उस बेदर्दी के आगे
हार दिया!!-