"माँ बाप की अन्तिम सांस
जपती रही अपने बेटे का नाम
और बेटा मस्त रहा करने में
केवल बीबी का गुणगान
पूछने तक ना आया उनको
पैदा किया था जिन्होनें उसको"
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माँ बाप को बेटे की और
बेटे को माँ बाप की
खामियाँ कभी नज़र नहीं आतीं
मगर
बहू एक ऐसा दर्पण है जिसके
आने के बाद माँ बाप को बेटे में
और बेटे को माँ बाप में खामियाँ
नज़र आने लग जाती हैं
😅😅😅😅😅😅😅-
हँसी आती है जब..
माँ बाप के घर में रहकर
उनका हर सामान,पेंशन,
जमापूँजी पर हक जमाकर.
जब कोई बेटा बहू सबको
और माँ बाप को सुनाते हैं कि
"हम तुम्हें रख रहे हैं"
कोई उन्हें बताए कि
कभी माँ बाप को बच्चे नहीं
बल्कि
माँ बाप बच्चों को रखते हैं
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पता नही कितनी बेटी मारी होगी उस लड़के को पैदा करने के लिए
जिसने शादी होते ही माँ बाप को छोड़ दिया-
घर की रौनक होती थी कभी ...
अब घर में मेहमानबनकर आती है ...
देखते ही देखते ना जाने कब ...
गुड़िया रानी से किसी के
घर की बहुरानी बन जाती है ...
हर रिश्ते को बख़ूबी निभाती है ...
हा बेटियां है हर माहौल
में ढलना सिख जाती है ...
बेटे सारी जिम्मेदारी बहुओं
को सौप जाते है ...
कितना यकीन है उनको
एक पराए घर की बेटी पर
घर की सब झंझट छोड़ जाते है ...
और खुद घर कि जरूरतों
के खातिर बाहर की
हजार ठोकरे खाते है ।
बेटा कहो या बेटी
दोनो अपनी किस्मत लेकर आते ।
और अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाते ।
भेद नहीं करो इनमे अब
और भेद करके भी
कोनसा कुछ उजाड़ पाते
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दिया था एक एक निवाला जिसके मुंह में,
बेटा मेरा अब सयाना हो गया।
वक्त का तकाजा देखिए जरा,
वो कोहिनूर में वृद्ध दिवाला हो गया।।
में कम पढ़ा लिखा था जनाब,
बेटे को पढ़ाता चला गया।
मेरा बेटा ना खाए दर दर की ठोकर,
सारा जीवन लुटाता चला गया।।
मुझे तो आंखों से दिखता भी नही अब,
बेटा डॉक्टर आंखो का हो गया।
नही संभाल पाऊंगी बुड्ढे को बहू ने कहा,
मुझे भूल बेटा अब बहू का हो गया।।
बढ़ी उम्मीद थी बुढ़ापे की लाठी बनेगा,
सपना मेरा वो तार तार हो गया।
एक दिन चुपके से छोड़ कर मुझे गांव में,
प्रभु अनजाने शहर का मेहमान हो गया।।
पहले भी दुखी था आज भी दुखी हूं,
पहले भी अकेला आज भी अकेला हूं।
आते जाते लोग कर जाते हैं दुआ सलाम,
प्रभु दयाल क्या बदला अब भी मैला कुचेला हूं।।
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