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एक बार बलात्कारी को जलाकर देखो,
बार बार मोमबत्ती जलानी नही पड़ेगीं !-
सिर्फ
इन बलात्कारियों के वास्ते
ना कोर्ट हो,ना कचहरी हो
इनका फैसला सरेआम हो..
घिनौना ज़ुर्म करने वालों की
रूह कांप जाये ऐसा इनका अंत हो...!
लोग ऐसा मिशाल देने लगे,
देश का, एक ऐसा इतिहास हो..-
हदों को अपनी लघता, इंसान दिखता है मुझे | रेप करता., हवश का शैतान दिखता है मुझे |एक ओर हँसता खेलता, बचपन भी दिखता है यहाँ |क्षण भर में उसको, मरता हैवान दिखता है मुझे …
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सकुची सकुची वह बैठी है
क्या दर्द समेटे रहती है।।
वो कुछ तो ऎसी पीर लिए
वो मन में कुछ तो धीर लिए।
कोई छल से उसको लूट गया
वो तन्हाई में आंख झुकाए बैठी है।।
क्या उसका दिल कत्लेआम आम हुआ
क्या उस पर अत्याचार हुआ।
कोई शख्स उसे छू कर के गया
और दुराचार कर बैठी है।।
क्यों खामोशीं से दुशासन को है तकती
नैनों में नीर भरे जख्मों को है तकती।
कोई क्रृष्ण कन्हैया आएगा
और मन में आशा लेकर बैठी है।।-
मैंने किताबों में बहुत से राक्षसों और दानवों का इतिहास पढ़ा है..
लेकिन उनमें से कभी कोई मासूम बच्चियों का बलात्कारी नहीं रहा.!!-
नारी का यूं शोषण करके
तुम जग रोशन कर पाओगे।।
तुमको दुनिया में लाकर वो नारी शर्मिंदा है
उस नारी के आंचल पर उंगली उठवाओगे।।
तुमको चिराग कहाने का हक नहीं है
उस मां की छाती का कर्ज चुका पाओगे।।
किसी की अस्मत लूट कर मजे लेने वाले
उस नारी की आंखों की चमक डुबो जाओगे।।
खुदगर्ज और सपोला पैदा नहीं करती नारी
उसके अस्तित्व का दाग मिटा पाओगे।।
नारी हूँ बहिन बेटी मां कोई मजाक नहीं
जग रोशन है मुझसे घर का चिराग बना पाओगे
नारी की काया लौ से कमजोर भले हो
ये वो आग है पानी से ना बुझा पाओगे।।-
आओ फिर से मोमबत्तियाँ जलाएँ
पर इस बार
बलात्कारियों के मुंह में घुसाएँ-