Rakhi Kulshrestha   (राखी)
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Joined 3 October 2017


Joined 3 October 2017
8 JUL 2023 AT 8:26

बात बात पर खीजना कहां की कला है।
विश्वासों और प्रीति से सबका जीवन चला है।।

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31 JAN 2022 AT 17:55

हफ्ते भर ऐसा लगे जैसे बीते साल।
नहीं खबरिया जब मिले मन होता बेहाल।
तभी भावना रोकती थोड़े दिन की बात,
पहन धैर्य की पोटली सहलाती खुद गाल।।

जब भी आंखें मूंदती झरे ममत्व दुलार।
अनुरागी अनुबंध का यह है प्रेम अपार।
मां की ममता खोजती तेरे से हो बात,
पर यह संभव है कहां हंस जाती हर बार।।
राखी कुलश्रेष्ठ कानपुर— % &

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24 JAN 2022 AT 9:15

ठंडी ठंडी शीत ने कैसा किया कमाल।
ढेरों जले अलाव पर है जीवन बेहाल।

जाने कब अब जाएगी ठंडी की ये मार।
नहीं कलम है चल रही मन लागै बीमार।

बचपन में यह ठंड भी मन भाय है जनाब।
उमर बेल ज्यों ज्यों बढ़े तब से लगे खराब।

सुबह-सुबह बस चाहना रवि किरण दिख जाय।
तिल लड्डू गुड़ खीर भी न ही मेवा सुहाय।

कौन कोने दुबक गए ऐ दिनकर भगवान।
थोड़ी सी बस धूप दो मत कर अब हैरान।
राखी कुलश्रेष्ठ कानपुर

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15 DEC 2021 AT 22:03

भान होता नहीं कब किसे तोड़ दे।
ये समय जिंदगी किस तरफ मोड़ दे ‌।
बंदगी से सतत तू निभा फर्ज को ,
मौन रहकर सदा ईश पर छोड़ दे।

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5 DEC 2021 AT 19:12

जिसे जैसा मिला जीवन, सहज स्वीकार अब करिए।
पहन ले कर्म पथ माला ,श्रमिक बन आप अब लड़िए।
तनिक दुर्लभ भले जीवन, मगर नीरस नहीं रहना ,
तिमिर में खुद उजाला कर, नियति गति भाग्य अब बढ़िए।

राखी कुलश्रेष्ठ कानपुर

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26 NOV 2021 AT 19:04


प्रीत, प्रेम ,अनुराग रूप संग रौद्र भाव जरूरी है।
थोड़ी हिम्मत स्वाभिमान संग कुछ बदलाव जरूरी है।
एक इतिहास लिखेंगे जब भी पथ में कांटे आएंगे,
यह संघर्षों की ठोकर भी पग में घाव जरुरी है।।
राखी कुलश्रेष्ठ कानपुर

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14 AUG 2021 AT 10:48

जाति धर्म से ऊपर बस ईमान रहे।
हर बेटी, बेटा का बराबर मान रहे।
मानवता की नींव बने अपने भारत में,
और तिरंगा जन गण मन सम्मान रहे।।

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10 AUG 2021 AT 21:15

जितना इंसान सरल उतनी जिंदगी सरल।
जितना ईमान तरल उतनी जिंदगी तरल।
जितना इंसान अकड़ उतनी जिंदगी कड़क।
जितना इंसान कड़क उतनी जिंदगी नरक।।

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31 JUL 2021 AT 13:15

-मनहर घनाक्षरी-
कामिनी का रूप धर,चमके बिजुरिया है,
हरी हरियाली में, बुंदिया बरस रही।
अंग अंग थिरके है, रुनझुन रुनझुन,
मचले जियरवा,पायल हरष रही।
झूमती बहारें चले,गरजे बदरवा हैं,
ओढ़ धानी चूनर,सखि भी सरस रही।
सौंधी सौंधी खुशबू से,यौवन दहक रहा,
कब आओ सजना,बस मैं तरस रही।
राखी कुलश्रेष्ठ कानपुर

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21 JUL 2021 AT 9:10

हे ईश्वर!अब किसी के मुख की मुस्कान मत छीनना।
रौनकें वापस दी हैं तो अब पहचान मत छीनना।
चाहे नमक रोटी दिए रहना हर घर में खाने को,
लेकिन अब किसी के घर का इंसान मत छीनना।।

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