-मनहर घनाक्षरी-
कामिनी का रूप धर,चमके बिजुरिया है,
हरी हरियाली में, बुंदिया बरस रही।
अंग अंग थिरके है, रुनझुन रुनझुन,
मचले जियरवा,पायल हरष रही।
झूमती बहारें चले,गरजे बदरवा हैं,
ओढ़ धानी चूनर,सखि भी सरस रही।
सौंधी सौंधी खुशबू से,यौवन दहक रहा,
कब आओ सजना,बस मैं तरस रही।
राखी कुलश्रेष्ठ कानपुर
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