बात बात पर खीजना कहां की कला है।
विश्वासों और प्रीति से सबका जीवन चला है।।-
हफ्ते भर ऐसा लगे जैसे बीते साल।
नहीं खबरिया जब मिले मन होता बेहाल।
तभी भावना रोकती थोड़े दिन की बात,
पहन धैर्य की पोटली सहलाती खुद गाल।।
जब भी आंखें मूंदती झरे ममत्व दुलार।
अनुरागी अनुबंध का यह है प्रेम अपार।
मां की ममता खोजती तेरे से हो बात,
पर यह संभव है कहां हंस जाती हर बार।।
राखी कुलश्रेष्ठ कानपुर— % &-
ठंडी ठंडी शीत ने कैसा किया कमाल।
ढेरों जले अलाव पर है जीवन बेहाल।
जाने कब अब जाएगी ठंडी की ये मार।
नहीं कलम है चल रही मन लागै बीमार।
बचपन में यह ठंड भी मन भाय है जनाब।
उमर बेल ज्यों ज्यों बढ़े तब से लगे खराब।
सुबह-सुबह बस चाहना रवि किरण दिख जाय।
तिल लड्डू गुड़ खीर भी न ही मेवा सुहाय।
कौन कोने दुबक गए ऐ दिनकर भगवान।
थोड़ी सी बस धूप दो मत कर अब हैरान।
राखी कुलश्रेष्ठ कानपुर
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भान होता नहीं कब किसे तोड़ दे।
ये समय जिंदगी किस तरफ मोड़ दे ।
बंदगी से सतत तू निभा फर्ज को ,
मौन रहकर सदा ईश पर छोड़ दे।-
जिसे जैसा मिला जीवन, सहज स्वीकार अब करिए।
पहन ले कर्म पथ माला ,श्रमिक बन आप अब लड़िए।
तनिक दुर्लभ भले जीवन, मगर नीरस नहीं रहना ,
तिमिर में खुद उजाला कर, नियति गति भाग्य अब बढ़िए।
राखी कुलश्रेष्ठ कानपुर
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प्रीत, प्रेम ,अनुराग रूप संग रौद्र भाव जरूरी है।
थोड़ी हिम्मत स्वाभिमान संग कुछ बदलाव जरूरी है।
एक इतिहास लिखेंगे जब भी पथ में कांटे आएंगे,
यह संघर्षों की ठोकर भी पग में घाव जरुरी है।।
राखी कुलश्रेष्ठ कानपुर-
जाति धर्म से ऊपर बस ईमान रहे।
हर बेटी, बेटा का बराबर मान रहे।
मानवता की नींव बने अपने भारत में,
और तिरंगा जन गण मन सम्मान रहे।।-
जितना इंसान सरल उतनी जिंदगी सरल।
जितना ईमान तरल उतनी जिंदगी तरल।
जितना इंसान अकड़ उतनी जिंदगी कड़क।
जितना इंसान कड़क उतनी जिंदगी नरक।।
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-मनहर घनाक्षरी-
कामिनी का रूप धर,चमके बिजुरिया है,
हरी हरियाली में, बुंदिया बरस रही।
अंग अंग थिरके है, रुनझुन रुनझुन,
मचले जियरवा,पायल हरष रही।
झूमती बहारें चले,गरजे बदरवा हैं,
ओढ़ धानी चूनर,सखि भी सरस रही।
सौंधी सौंधी खुशबू से,यौवन दहक रहा,
कब आओ सजना,बस मैं तरस रही।
राखी कुलश्रेष्ठ कानपुर-
हे ईश्वर!अब किसी के मुख की मुस्कान मत छीनना।
रौनकें वापस दी हैं तो अब पहचान मत छीनना।
चाहे नमक रोटी दिए रहना हर घर में खाने को,
लेकिन अब किसी के घर का इंसान मत छीनना।।-