अगर कहना ही फितरत होती तो, सब कबका सुना लेते अगर सुन ना फितरत होती तो, सब कबका सुना जाते वक्त और मौके पे, फितरत बदलना रिवाज़ नही हमारा इसीलिए बिना कहे सुने लोगो को समझना आदत रही है हमारी।
मानो मेरी मंज़िल उसमें तबदील हो गई हो उसकी मोहब्बत जैसे मेरी तकदीर हो गई हो। दूरियाँ बढ़ाना फितरत में था उसकी और उसकी गलतियाँ छिपाना मेरी फितरत सी बन गई हो।
भले ही, शौहरत हमारी तुमसे, कई ज्यादा हो। तुम, इन निगाहों की मोहब्बत़ पाने के लिए,अपनी फितरत, मत बदलना। बस! तुम अपना दिल, नेक रखना और ताउम्र, हमें अपने संग, लेकर चलना।।
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