भरी जवानी में माँ के चरणों में
कर दिया अपने प्राणों का समर्पण
रहेंगे अमर हमारे दिलों में वो
अपने शब्दों के करती हूँ श्रद्धा-सुमन अर्पण-
मेरे प्रेम और अधिकार को प्रिये तूने ह्रदय से अपनाया
मंदिर मस्जिद घूमा साधना की तब तेरा प्रेम है मैंने पाया
पारस सा है मेरा प्रेम प्रिये,कस्तूरी मृग सी तू छलावा
अनुपम सौंदर्य की तू मल्लिका,तेरा प्रेम है मैंने पाया
व्याकुल मैं तेरे लिये,संग तेरे आया जीवन मे मेरे सवेरा
चारों दिशाएँ झूमे मेरे संग प्रिये, तेरा प्रेम है मैंने पाया
जगी मन मे तेरे प्रेम की स्वर्णिम ज्योति,उजियारा छाया
तू प्रेमिका मेरी,मैं प्रेमी तेरा,अब क्या खोया और क्या पाया
तुझ संग सुख की माला है पिरोनी, संग सजानी है रंगोली
प्राणों से प्यारी मेरी"मीता"हो, जग घुमा तुझ सा न पाया।।-
तुम! मेरे लिए उतनी ही
आवश्यक हो जितना
मेरे प्राणों का स्पंदन,
मेरी सांसों का आवागमन,
मेरी धमनियों का रक्त प्रवाह...!-
प्रियतम मेरे प्राणों में तुम नित नये नये रूपों में आ।
गन्धों में आ,वर्णों में आ,तन की रोमांचित सिहरन बन,
निर्झर उल्लास,सुधा बन आ,मेरे मुग्ध मुन्दे नयनों में आ।
सुन्दर,स्निग्ध प्रशांत अहे!
मनहर मेरे सुख दुख में आ।
मेरे प्रियतम! प्राणों में आ।
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