ऊंची पहाड़ी से छलांग लगाती हुई
टूट कर बूंद बूंद हुई नदियां देखी हैं।
- सुप्रिया मिश्रा-
घुघुती मेरे पहाड़ की
घूम भी लूँ...
चाहे दुनियां सारी
बन भी जाऊं....
चाहे ग्रीनकार्ड धारी
और चाहे देख लूँ....
ज़िन्दगी विदेशों की
चकाचौंध भरी।
पर मैं गुनगुनाउंगा साथी
इन पहाड़ों पर कहीं
एक पहाड़ी "घुघुती" बनकर।
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हाड़ सी
नारी पहाड़ की
वो घस्यारी रुख्यारी भी थी
वो मेरी सखी थी...
(शेष अनुशीर्षक में)
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.....दूर कहीं हिमालय की गोद में
जिया है मैंने इस स्वप्न को हकीकत में
अब जीना है
तुम संग ❤️
(पूरा अनुशीर्षक में पढ़ें)-
गर कोई पूछे,
जो मेरे घर का पता..
मैं कहुँ,
बादलों के पार,
स्वर्ग का है जहाँ से रास्ता..
देवों के देव,
महादेव का है जहाँ से वास्ता..
कर्म प्रधान है जो भूमि..
महक वीर जवानों की
आती है जहाँ भीनी भीनी..
लहू बहता है,
देश के लिए जिसका,
मैं भारत के उस भाग
की निवासी हूँ ..
उत्तराखंड नाम है जिसका..❤️-
ज़हन में तुम्हारी तस्वीर
उस पर ख़ूबसूरती इन पहाड़ों की।
हवाओं ने फ़िर गले लगाकर
इस दिल को और परेशान कर दिया।।
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कितना भी चाहे कमा लो तुम इस महंगाई की मार में....
एक दिन तो आना ही पड़ेगा माटू खैड़ने इस पहाड़ में ..😊-
वो ऊँचे ऊँचे हरे भरे पहाड़
वो गाड़ गधेरों में कल कल करता जल
वो देवभूमि में बजती घंटियां
वो चंदू ड्राइवर माठू माठू गाडी चला वाला गाना
मशानी कोई मसाण भी नहीं रोक सकता
तुझे इन वादियों में जीने से😊-
ख़्वाहिश
सुदूर ऊँची पहाड़ी पर प्रायमेरी का
एक सरकारी विद्यालय।
बच्चे कोई गिने चुने
पढ़ाई ,मिड डे मील एक तरफ और
एक कोने में शहर की तरह एक झूला।
उसमें हिलौरें खाता ये बचपन
आंखिर तुम क्यों वंचित रहो !
कदाचित ये संभव हो !
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