भटकते हैं गुमनाम शहरों में हम
वो रास्ता भी तो वीराना सा था
दर्द दिल में भी मेरे उठता रहा मगर
तन्हा छोड़ना तेरा ही नज़राना सा था
सफर में थे हम और जुदाई तेरी थी
फिर तेरा पता भी अनज़ाना सा था
चलते रहे यूँही आड़े टेढ़े रास्तों में
जिन्दा थे मगर शरीर बेज़ान सा था-
उम्र के उस पार होगा न तेरा कोई
लड़ना व संभलना होगा खुद से ही
कुछ फासलें तो दुनियाँ बना लेगी
तो कुछ दूरियांँ भी होगी खुद से ही-
एक अनसुनी आवाज़ ने इस कदर ड़राया है
जलता हुआ च़िराग हूँ मुझे बुझाने से ड़राया है
रोशनी हूँ रोशन सी जिन्दगी जीनी हमें हैं सदा
आतिश और खौफ़ से भी हाथ हमनें बढा़या है-
तुम्हारा साथ मिला तो
जिदंगी को सहारा मिला
तुम को भी कोई अपना
हमको कोई हमारा मिला-
बाहों के घेरे में तेरी पनाह मिली तो
दुनियाँ से महफूज़ होने लगें हम
तेरे एहसासों से लिपटें तो खुद की
धड़कन को महसूस होने लगें हम
तोड़ीं जो हमनें भी बंदिशें ज़माने
की लोगों में मशहूर होने लगें हम
रुह जो तेरी रूह में समायी दुनियाँ
हैं बोली मगरूर क्यों होने लगे हम-
बड़े चाव से चखोगें गर स्वाद जिन्दगी का
जीने का मजा भी आने लगेगा फिर धीरे धीरे
कड़वाहटों को मिठास में बदलोंगे गर सदा
जिन्दगी के ख्वाब भी होगें फिर पूरें धीरे धीरे
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मायूस तो हो चुके थे तेरे सर ए सहारा से हम
रिश्ता तो तोड़ चुके करोगें गिला सिकवा कैसे तुम
इतिफ़ाक़ से मिले जिन्दगी में गर कभी जो हम
तो पूछना जरूर हाल ए दिल मेरी बेबसी का तुम-
कुछ न कहो कहने और
सुनने में रखा ही क्या है
मन से जान गए सच्ची तुम
सच्ची मैं बातों में रखा ही क्या है-
तृप्ति हुये या तिश्रगी तुम बैठे हो
कुछ हँसी कुछ गम दबायें बैठे हो
बहा दो नैनों से अश्कों की कहानी
राज मन में क्यों तुम छुपायें बैठे हो
हँस कर ना यूँ दिल के जख्म छुपाओ
मन में गमों का क्यों घर बनायें बैठे हो
वक्त भी बदलेगा हँसी की ठहाकों से
लम्हें तुम ये क्यों खराब कियें बैठे हो-
समझ और शब्दों के ही अहम किरदार होते हैं
कभी समझ नही पाते कभी समझा नही पाते हैं
जिनको रिश्तें निभाने के सही ढंग आते हैं
नेक इरादे न उनके कभी वादे भूल पाते हैं
बस फरेबी वाला ये चश्मा उतार कर देखो सदा
भरी भीड़ में भी नही तो गुमनाम वो रह जाते हैं-