समक्ष मेरे नेत्रों के ,
अब कुछ ऐसा मंजर आया है ।
जो भी कहती थी ये दुनिया मुझे ,
वो बात स्मरण हो आया है ।
जिस घर आंगन में पली बड़ी ,
आज निशब्द हूं मैं मौन खड़ी ।
जो पहले कभी कहा नहीं ,
ये दुखित मन आज कहता है ।
मैं हूं बेटी , मैं कोई पराया धन नहीं ....!!
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तुम कितनी ही कोशिशें कर लो किसी को अपना बनाने की,
कोई अपनी बातों से कभी जता ही देता है कि तुम पराये हो!-
कभी-कभी बहुत खाली लगता है,
मुझे मेरा अपना आप,
न कुछ अंदर महसूस होता है,
न कुछ बाहर दिखाई देता है,
कभी-कभी बहुत सूना लगता है,
मुझे मेरा अपना आप,
न कोई शोर करता है,
न कोई आवाज़ लगाता है,
कभी-कभी बहुत पराया लगता है,
मुझे मेरा अपना आप,
न मुझे पहचानता है,
न मुझे अपनाता है,
कभी-कभी मुझे अपना लगता है,
मेरा अपना आप,
मुझे समझता है,
गले लगाता है,
मुस्कुराता है,
अँधेरे में रोशन हो जाता है...
-aRCHANA
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दबी हुई है कुछ बाते जहन में
कहने को मन करता है,
कहूं किसे ये दिल की बातें
यहां कोई अपना नहीं लगता है
...-
एक नया रिश्ता जुड़ा और मुझे मेरे अपनों ने पराया कर दिया..
या खुदा क्या यही मेरे अपने थे, जिनके लिए मैंने अपने अरमानों और वक्त को जाया कर दिया...!!-
थोड़ा तुझे अपना बनाकर
थोड़ा पराया रहने दू
ये मेरे दिल की बात है
दुनिया को कैसे कहने दू-
||ससुराल||
कितने सपने आंखों में बसायी थी
मेरी हर बातों को तुने झूठलाई थी
मायका तो पराया है बेटी यहीं कहकर
तुने मुझे ससुराल भिजवायी थी
मेरी अच्छाई और सच्चाई पर ग्रहण लग गया
तेरी परवरिश भी आज कलंकित हो गया
कर भी क्या सकतीं हूँ मैं
तुने जो मुझे पराया कर दिया
अब तो लौट भी नहीं सकतीं हूँ मैं ससुराल से
कैसे पीछा छुड़ाऊंगी मैं तुझ पर उठने वाले अनगिनत सवाल से
आपने तो मुझे संस्कारों की चुंदरी ओढ़ाई थीं
पर मेरी शौक का व्यसन उतारना तो भूल गयीं थीं
मैं अपना घर छोड़ ससुराल आ गयी
और सब के मुख पर एक ही सवाल था कि
दहेज में क्या लाई
अपने हक़ की हिस्सेदारी अब यहाँ कहाँ
बस यही सोचकर माँ मुझे तेरी और मेरे मायके की याद आ गयी
-ऋषिकेश
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