और से लड़ना छोड़ो ।
खुद ही को तुम पढ़ो
अपने आप से ही लड़ो ।।
-
सुना है काफी
पढ़ लिख गए हो तुम,
कभी वो भी पढ़ो
जो हम कह नहीं पाते...!-
अब बड़े इत्मीनान से मुझे पढ़ो तुम,
क्यों बड़े इत्मीनान से तुम्हे मैने खंगाला है।।-
न जाने क्यूं,
आसमां से नफरत करता हुं,
उड़ने की ख्वाहिश हैं,
लेकिन चलने से डरता हुं।
-
("पढ़ो कि...०१")
पढ़ो कि पानी वैश्या नहीं है
पैसे हैं तो मौज उड़ाओ
पढ़ो कि किसी को पानी नहीं है
बुद्धि को अपनी उधर दौड़ाओ
पढ़ो कि 'जंगल', वो बूढ़ा बाप नहीं है
जब मन चाहे काट दो तुम
पढ़ो कि 'धरती', वो बूढ़ी मांँ नहीं है
जैसे चाहो बांट लो तुम
पढ़ो कि नदियां नाली नहीं थी
पढ़ो कि नदियां काली नहीं थी
पढ़ो कि उसमें रहता है कोई
पढ़ो कि वो कूड़ेदानी नहीं थी
पढ़ो कि जिसको होश नहीं है
पढ़ो कि जिसका दोष नहीं है
पढ़ो कि कोई जन्म से पहले न मरे
पढ़ो कि दोष किसी और को न चढ़े-
हां बस मैं हुं,
कोई और नहीं,
क्या में अकेला हुं?
नहीं, फ़िलहाल तो ऐसा एहसास नहीं।-
तुम्हारे मन में जो आए वो कहानी मेरे बारे में मत गढ़ो तुम.
मैं रहनुमाई करनेवाला बन्द किताब हूं मुझे खोलकर पढ़ो तुम-