ख़ुदा तुझे ही बुला रहा है
तू मयकदे क्यों जा रहा है
निगाह अपनी उठा के देखो
गुनाह सबके दिखा रहा है
सुना करो कुछ इधर-उधर की
सुखी भी दुख को सुना रहा है
चलो इबादत करें ख़ुदा की
ख़ुदा कहाँ कुछ छुपा रहा है
नहीं है दुनिया कहीं भी नंगी
नज़र को तू ही गिरा रहा है
रज़ा में राज़ी वही है 'आरिफ़'
तू हाथ जिस पर उठा रहा है
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