कभी कभी मेरे शब्द
सिसकने लगते है
बेबसी सोख के
किसी नन्हें हाथों
की फैली हथेली
देख कर |
बौनी लगने लगती है
प्रेम मे रचि मेरी
प्रेम कविताएँ |
..
क्यों नहीं समेट पाती मै
उनकी आँखों के
सपनें अपनी कविताओं मे?
क्यों स्वार्थी सी प्रतीत होती है
मेरी कलम?
..
..
क्यों मासूम चेहरे की कालिख
को पोछ नहीं पाता
मेरे शब्दों का पानी?
क्यों? क्यों? क्यों?
ये सवाल मेरा,मेरी ही कविताओं से
शब्दों से 🙏🙏🙏🙏-
भटकता मन आगे और जाएगा,
अभी तो यह यात्रा की शुरुआत है!
शब्द है अभी आधे अधूरे जड़वत,
भावनाएं निःशब्द ही स्वीकार्य है!-
मैं घर का बड़ा लड़का हूँ, मुझे मजबूत दिखना होगा
मेरे अरमान हो तो क्या,मुझे हर हाल में आगे बढ़ना होगा
गलत को गलत कहूँ तो मैं गलत, सही को सही कहा तो मैं गलत
मुझे सही को गलत गलत को सही करना होगा
मैं घर का बड़ा लड़का हूँ,मुझे मजबूत तो दिखना होगा
मन हो रोने का तो रोना नही हैं, अपनी हद से ज्यादा हसना नही है
दूसरों को रोते देख कंधा भी हमे है बनना,सबको मनोबल देना खुद को हैं संभालना
ओर इन सब के बीच कुछ दर्द बयां हो जाये तो उसे हंसी में हैं भूलाना
मैं घर का बड़ा लड़का हूँ,मुझे मजबूत तो दिखना होगा
मुझे मेरी जीत मेरे घर में हार में बदलना होगा क्योंकि कही चला गया तो घर को फिर बदलना होगा
मैं जिमेदार हूँ तो मुझे जिमेदारयो को समझना होगा
मेरी जीत हो या हार हो मुझे घर के लिए तो लड़ना होगा
मैं घर का बड़ा लड़का हूँ,मुझे मजबूत तो दिखना होगा
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शाम की सुबह, सुबह की शाम में ढल रहा हैं
तुम हो मुझमें, मेरा तुझमें तुझें होना खल रहा हैं
ओर वो जो कहते हैं हमे परवा नही रिश्ते की हमारी
उन्हें तेरा साथ मेरे होना बेदर्द आशिक़ सा जल रहा हैं
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वो फांसले अदब के थे इम्तिहान अब क्या लीजिये
लौट आईये वफ़ाऐ दिल में दबाये बैठे हैं इस कदर
आप आईए ओर हिसाब बाकी जो दिल से दिल का चुका लीजिये
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हर शाम उदाशी में जो कुछ लिखता हूँ
मेरे गम में सुबह सब वाह वाह किया करते हैं
जो तोड़ डालू जुबान रंजिशें जो तुमसे है
इन दर्दे रंजिशों पे भी ये बेदर्द आवाज किया करते हैं-
तुम एक ख़्वाब सी थी हक़ीक़त के पास सी
हम हक़ीक़त को ख़्वाब समझ बैठे थे
तेरे रुखसत के वक़्त बहुत रोया करते थे
अब जो तुम मिले हो हम खुद को भूल बैठे हैं-
वादे पे मेरे मुझे खुद ऐतबार नही
कितना रोया हूँ पलट के मुझे खुद याद नही
वो अश्कें चराग़ सा जलता हूँ तेरी आँख में
कितनी बार राख हो गया इन आँखों से खुद मुझे याद नही-
अल्फाजे इश्क़ सुने हैं अल्फाजे इश्क़ ही हम सुनाएंगे
इस मोहोबत के शहर आये मोहोबत ही हम निभाएंगे
ओर वफ़ाये तो कई देखी होगी तुमने इन आशिको की
मगर हमारी वफ़ाये तो आने वाले कई आशिक़ गुनगुनाएगे
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"तुम्हारी सुन्दरता को देख मैं निःशब्द हूँ।"
"तुम्हारी निःशब्दता ही तुम्हें सुंदर बनाती है।"-