" नादान परिंदा मैं , आज खुले आसमां में कहीं उड़ चला। "
-
2 JUN 2021 AT 12:51
आसमान में उड़ने वाले पंछी को भी थक कर
डाली पर आना पड़ता हैं
वृक्ष भी भूमि से जुड़ा हैं
फिर तुम तो धरती पर ही रहते हो
सुनों शाम हो गई हैं लौट आओं।-
11 SEP 2019 AT 7:53
इज़हार करना था और सनम इनकार कर बैठे,
वस्ल की आरज़ू थी, हया का असरार कर बैठे!-
21 NOV 2019 AT 13:48
सोया हूँ मैं, ये भ्रम है तुम्हारा
समझो जिसे लोरी, है रुदन हमारा-
31 DEC 2019 AT 14:14
परिहास की अति से फंसता..... फरेब-ओ-मक्र जंजाल में,
काल विजयी है सदा पुरफ़न से होता.., जंजीर-ओ-चक्र जाल में!!
-
19 OCT 2019 AT 11:38
सन्नाटा लिख रहा है तख्त़ पर सपने हजार
कहीं मर न जाएं वक्त बस खयाल ताज़े रख-
11 SEP 2019 AT 0:24
कहां सब्र हासिल करना था और कब्र हासिल कर बैठे,
आज अपनी रूह से मिलकर, क्या खूब सितम हम कर बैठे।-
25 AUG 2019 AT 15:20
ताउम्र मुझको बस यही इक ग़म रहा,
इंतज़ार ही हमेशा क्यूँ मेरा हमदम रहा!-
2 AUG 2019 AT 10:58
अठरंगी ख्यालों की महफ़िल में
तेरी कही वो बात ही मेरी थी।-