तुम नवोदय के x_navodayan कहे जाने वाले हो,मैं विद्या मन्दिर का पूर्व छात्र कहे जाने वाला लड़का हूं।
तुम लखनवी बास्केट चाट खाकर बतासे का पानी मांगने वाले हो,मैं मोमोज के साथ extra चटनी मांगने वाला लड़का हूं।।
तुम लखनऊ university के luian कहे जाने वाले हो,मैं DDCP का Cadet कहे जाने वाला लड़का हूं।
तुम अम्बेडकर पार्क में घूमने वाले हो,मैं गांधी पार्क में भी gym के लिए ही जाने वाला लड़का हूं।
-
नवोदय हुआ
फिर दिन ढल गया
एक और शाम आ गयी
कुछ पत्ते शाख से अलग हुए
कुछ नयी कलियाँ आ गयी
एक सितारा टूट गया
फिर नयी चाँदनी आ गयी
रिश्ते पुराने टूट गए
एक नयी यारी भा गयी
ये वक़्त यूँ ही गुजर गया
आज फिर पुरानी यादें आ गयी
थोड़ी हँसी थोड़ी नमी आँखों में छा गयी...
नवोदय
आज फिर तुम्हारी याद आ गयी-
कोई ज़न्नत कहता है किसी का प्यार है
छोटा सा है मगर खुद ही में संसार है
जमीं का एक छोटा सा टुकड़ा
चारदीवारी से घिरा हुआ हमारा घर है
सूरज के उदय होने से लेकर चांद के अस्त होने तक का जीवन जीते थे हम
हर रंग जाति धर्म के फूल थे उसमें
वो गुलिस्तां था हमारा, गुल थे हम
कैद ए ज़न्नत कभी कभी अखरती थी
मगर बहुत निष्ठुर बन बैठे थे हम
उन हवों में कुछ अलग ही बात थी
खुद ही डांटती थी खुद ही लोरी सुनती थी
सात सालों का सफर है पर कहानी नहीं है बस एक किस्सा है
कैसे भूल जाऊं उसे वो मेरे अस्तित्व का अमिट हिस्सा है
जिसके आंचल में खेलते खेलते नादान परिंदे से इंसान हुए हैं
उसने पहचान दी है हमारी पहचान को तभी तो हम नवोदयन हुए हैं-
ये रात गुज़रती हुई
नवोदय करती हुई
एक किरण चलती हुई
मन में उमंग भरती हुई
होंठों को मुस्कान से
लफ्जों को कलम से धरती हुई
समय की रेत मुट्ठी से फिसल कर
मुट्ठी में गिरती हुई-
""नवोदय""
अब वो PT सर की सीटी हमें नहीं जगाती है
न ही वो mess की घंटी खाने पर बुलाती है
वो दौड़ कर morning assembly में जाना
चुपके से पीछे लाइन में लग जाना
Class में आखिरी टेबल पर बैठेना और
किसी के न आने पर खुद yes sir बोलना
खुद अपनी किताब न ले जा कर दूसरो की छीनना
और बहाना तो ऐसा बनाना की एक बार में सब मान जाएं
वो स्कूल खत्म होने की घंटी
वो फिर से खानें की घंटी
ऐसा लगता था जैसे वक्त के गुलाम है हम
मगर आज फिर से वो गुलामी जीने को मन करता है
फिर से नवोदय जाने का दिल करता है
फिर से वही ज़िन्दगी जीने को दिल करता है
एक बार फिर नवोदय जाने को दिल करता है....
-
💗💗 वो भी, क्या दिन थे यार💗💗
*********************************
वो भी ,क्या दिन थे यार!!
पढ़ाई मस्ती सपने बेसुमार,
थोड़ा सा प्यार थोड़ी तकरार,
घर जाने को हमेशा रहते बेकरार,
और घर पे स्कूल खुलने का होता इंतजार।।
बंक करने हो हिंदी के क्लास,
या पड़ना हो झूठा बीमार,
दोस्तों की टोली तो ,
हमेशा होती थी तैयार।।
वो भी,क्या दिन थे यार!!
याद तुम्हे भी तो होगा ही,
फ्रेंडशिप डे हो या हो राखी का त्योहार,
गर्ल्स हॉस्टल के आगे,
लगते थे जो लड़कों के कतार,
दोस्त ही हमारे मां बाप बन जाते,
जो कोई दोस्त पड़ जाते बीमार,
अब उन मासूम दोस्तों को ,
कहा ढूंढूं ,बता ना यार।
वो भी ,क्या दिन थे यार!!
सिर्फ स्कूल नहीं था अपना वो,
वो तो अपना जीवन था,
क्या याद तुम्हे भी ए यारों,
कितना प्यारा अपना बचपन था।
जितना भी लिखूं उन दिनों को,
शायद शब्द कम पड़ जाएंगे,
जितना तुम पढ़ते जाओगे,
आंखों में अश्रु भी उतने आयेंगे।
सिर्फ पढ़ो मत,सारे दोस्तों तक उनका बचपन,
एक बार फिर से पहुंचा दो ना यार।।
-
J.n.v.- यादों का इक सुहाना सफर ✈️
जब
हॉस्टल में क्रिकेट खेलते समय,
ट्यूबलाइट या बल्ब फूट जाता था ।
तब
हमलोग उस के जगह पे फ्यूज ट्यूबलाइट या बल्ब लगा देते थे,
और बाद में नया इश्यू करवा लेते थे।🤩-
ये तो चंद दिनों का lockdown है
हमने 7 साल नवोदय में बिताए हैं
बोलो! हमीं नवोदय हो!🙏😎-