जिसका
सफर तय करेगा कि मंजिल क्या है
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Sahjal Sharma
नजर का उठना, कुछ कहना लाजिम है
हर नजर पाक हो जाए तो सुकू मिले ☘️✨
ना कोई मंज़िल ना कोई सफर
बस दिन निकलते जा रहे हैं
बस ऐसे ही जिए जा रहे हैं-
साँसों का सिलसिला कुछ बदला सा है
जहर इंसान का हवाओं में फैला सा है
कुछ लोग बदल गए
कुछ ये मौसम भी बदला सा है
किसी और को क्या दोष दे
शायद ये सब मानव कर्मों की सजा सा है
कुछ नजर नहीं आ रहा इस अँधेरे में
अब हर घर मंदिर का दीपक जला सा है ✨
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