फागुन की द्वादशी श्याम मिलन की बेला
चलो मिलकर खाटू चले लगा गजब का मेला ।।-
आँखों से तककर....
होठों से होता हुआ....
मेरे पूर्ण शरीर को....
पवित्रता से भरता हुआ....
तुम...... मेरे खड़ूस जीवन में
निर्जला एकादशी के बाद...
द्वादशी का मीठा ठंडा जल हो..... !
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मनाऊँ हर्ष की आज की तारीख ने ,
बांधी थी खुशियों की लड़ी।
पर नम हो जाती आंखें ये सोचकर,
आज की तिथि ने बरसायी दुःख की झड़ी।
मुझको रचकर मुझमें रंग भरें प्यारे,
मेरी स्वागत में जो रहती थी पलकें बिछाएं खड़ी।
दुखाया दिल जिन्होंने उसे भी लेती गले लगा,
जोड़ती थी सबको टूट गई वो कड़ी।
हर खुशी अधूरी तुम बिन लागे मुझे,
जबसे जीवन ज्योत तेरी बुझ पड़ी।
किस बात का मैं करुं ज़िक्र ,
मेरी ख़ुशी और उदासी दोनों तुम से है जुड़ी ।-
'दुनिया' और 'हालात' दोनों ने बहुत
कोशिशें की मुझे "कमज़ोर" करने की।
पर उसका 'सहारा' और 'रहमत'
मुझे और "मज़बूत" करते गए।।-
स्वदुग्धे सदा पोशिते जी जगाला।
स्वपुत्रांस दे जी कृषी चालवाया।
परमपूज्य जी वंद्य या भारताला।
नमस्कार त्या दिव्य गोदेवतेला॥
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दिवाळीतल्या
गोवत्स द्वादशीच्या सानंद शुभेच्छा!
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