न जाने क्या है हम दोनों के दरमियाँ जो
दूर रह कर भी पास आ जाते है .....
तुम्हारे दिए सितम आज भी याद है
मुझे फिर भी न जाने दिल मानने को तैयार
हो नही कुछ तो है हम दोनों के दरमियाँ जैसे
दिल का धड़कन से, आंखों का आंसू से.....
शायद ये खुदा का बनाया हुआ वो अटूट रिश्ता है
जो न कभी जुड़ सकता है और न कभी टूट सकता....
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यादों की नजदीकियाँ तेरी
भाती है, मुझे चाहती हैं
यही है शायद "कुछ" जो
हमारे दरमियाँ बाकी हैं...-
मुस्कुराने लगते हैं
जब ख्यालों में वो चलते हैं..!!
गुनगुनाने लगते हैं
जब ख्यालों में जिक्र हमारी होती हैं..!!-
भूलकर तुझको कल याद करता रहा,
खुद की खातिर खुद को लाचार.....करता रहा।
दूरी कदमों की थी दरमियाँ फिर भी मैं,
न बढ़ाया कदम बस इंतजार.....करता रहा।
वस्ल की थी तमन्ना हकीकत में तुमसे,
फिर भी बस ख्वाब में दीदार.....करता रहा।
मुस्कुराते हुए चल दिए दिल तोड़कर,
एक हँसी के लिए खुद का व्यापार.....करता रहा।
सिर्फ तुमको ही माँगा खुदा से दुआ में,
सिर्फ तुमसे हाँ तुमसे ही प्यार.....करता रहा।
-ए.के.शुक्ला(अपना है!)-
तुम मेरी निगाहों में रहना, हम तेरी निगाहों में रहेंगे।
हम दोनों के दरमियाँ, बस, खामोशी ही, अपने अल्फाज़ कहेंगे।।-
तुमसे मैं रूठ जाऊँ फिर तुम मुझे मनाओ,
या फिर इस कदर भूल जाऊँ कि याद भी न आओ।
जो फाँसले है दरमियाँ उन्हें इस तरह मिटाओ,
मिलने ना आ सको तो ख्वाबों में चले आओ।
क्या चाहती नहीं तुम मुझको जरा बताओ,
दिल पे हाथ रखो और मेरी कसम खाओ।।
-ए.के.शुक्ला(अपना है!)-
तेरे मेरे दरमियाँ फासलों की हो कमियां
करीबियों का कुसूर जारी है बदस्तूर
हिचकिचाहटों की आहटों में
अल्फ़ाज़ों की खामोशीयों में
नज़रों की बातों का सिलसिला चल निकला
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तेरे मेरे दरमियान एक रिश्ता था
जो गुमसुदा सा हो गया
बस उसके बिन बुलाए आ जाने से....-