सब कुछ नहीं मिलता दुकानों में,
चीज़ों को वक़्त रहते बनाना पड़ता है,
उम्मीदों से, आशाओं से सजाना पड़ता है,
एक वक़्त जब हर कोई साथ देगा तुम्हारा,
एक वक़्त जब हर कोई जिक्र करेगा तुम्हारा,
वो वक़्त भी हिम्मतों से बनाना पड़ता है,
नफरतों से नहीं मिलता यहां कुछ जनाब,
नफ़रत हो भी तो नफ़रत को छुपाना पड़ता है,
सतर्क रहिए इन जहां वालों से -मेरे ख़ास,
जनाब यहां जो झूठी मुस्कान दिखादे वो अपना,
और जो कड़वा सच बोलदे वो बेगाना लगता है,
सब कुछ हर किसी को ख़ुदा से यूहीं नहीं मिलता,
यहां हर चीज़ के लिए कुछ न कुछ कर जाना पड़ता है
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