मुहब्बत के पंछी उडे हैं पिंजरे से ,
बाहर ख़बर कर दीजिए इनको न पकडे ।
पहली दफ़ा ऊँची उडां इतनी भरी हैं ,
बेख़ौफ़ हो आकाश नीले कौन पकडे ?
अनुभव अभी इतना नहीं फिर भी उडे हैं ,
बाली उम्र में रोज़ बाँहे कौन पकडे ?
एक दम हुए आज़ाद तो मारे ख़ुशी के ,
सुध बुद भुला बैठे अजी लो कान पकडे !
समझे नहीं हम हाथ के उनके इशारे ,
बोले नहीं सच झूठ उनका कौन पकडे ?
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