हम आज फिऱ मुहब्बत के जंगल में
फिऱ कटे हैं फिऱ गये हैं उग से,
ना दूर तुमसे हैं ना फ़ासले ख़ुद से
मैं शज़र, हैं मेरी शाखायें तुझ से,
कल ही हम मुरझा गये थे तेरे ख़यालों में
औऱ आज फिऱ निकलीं हैं कोपलें मुझ से,
ख़ार तो ख़ार थे हमें फूलों ने भी नहीं बख्शा
कड़ा गये हैं औऱ गये हैं चुभ से,
ज़िन्दगी ले चल कहीं औऱ दूर यहां से हमें
तुझसे उकता गये हैं, हम गये हैं... ऊब से..!
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