Prabha Shah   (वैतरणी)
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A wanderer in search of life!
Civil Servant
Joined 31 October 2016


A wanderer in search of life!
Civil Servant
Joined 31 October 2016
15 SEP AT 22:10

ना शबनमी रात ना आँचल मिले,
अब नींद कैसे आए इसका हल मिले।

कभी टूट जाए दिल कभी मिले तन्हाई,
कुछ ऐसे हाल में हमें आजकल मिले।

भला सहराओं से उम्मीद भी क्या रखना,
ढूंढे तो ना पानी मिले, तो ना फसल मिले।

मेरी कट जाए ज़िंदगी चाहे जैसे भी हो,
पर तुझको ना तेरे किए का फल मिले।

मेरी ग़ुरबत से भला तेरा क्या वास्ता,
जा शहज़ादे तुझे शाह मिले, महल मिले।

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13 SEP AT 21:39

मजबूरियाँ ये कहतीं हें मुलाक़ात मुमकिन नहीं,
उम्मीद ये कहती है थोड़ा और इंतज़ार सही।

सन्नाटे भी कुछ राज़ सुनाते हैं रातों में,
ख़्वाबों की तासीर से होता है दीदार सही।

राहों में भटकते हुए अक्सर ये लगता है,
मंज़िल न मिले फिर भी सफ़र का एहसास सही।

तन्हाई ने सीने में चुपके से कहा यूँ है,
ज़ख़्मों पे मरहम बने कोई यादों का भार सही।

दिल ढूँढ ही लेता है उम्मीद के जुगनू फिर,
अंधेरे को समझे अगर रौशनी का इकरार सही।

सफ़र कहता है, तन्हाई भी अब ग़मगीन नहीं,
अगर तेरे लौट आने का हो दिल में ऐतबार सही।

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27 APR AT 20:23

ना शबनमी रात ना आँचल मिले,
अब नींद कैसे आए इसका हल मिले।

कभी टूट जाए दिल कभी मिले तन्हाई,
कुछ ऐसे हाल में हमें आजकल मिले।

भला सहराओं से उम्मीद भी क्या रखना,
ढूंढे तो ना पानी मिले, तो ना फसल मिले।

मेरी कट जाए ज़िंदगी चाहे जैसे भी हो,
पर तुझको ना तेरे किए का फल मिले।

मेरी ग़ुरबत से भला तेरा क्या वास्ता,
जा शहज़ादे तुझे शाह मिले, महल मिले।

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23 APR AT 12:55

दहशत का सदका करके यूँ,
अब कौन-सा रब ये पाएगा?
मासूमों की लाशों पे चढ़ के,
जाने किस जन्नत को जाएंगे।

काश चीर अंबर का सीना,
ख़ुद ख़ुदा ज़मीन पर आ जाए।
अक़्ल बख़्शे इन नासमझों को,
फिर शैतान से इंसान कर जाए।

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9 APR AT 19:44

जब से कंधों पे खड़ी ज़िम्मेदारी हो गई है,
ज़िंदगी वाक़ई बहुत भारी हो गई है।

पिता के सिक्कों पर जवानी खूब उड़ाई,
कमाई की पाई-पाई अब प्यारी हो गई है।

ज़रूरतें हर रोज़ खोल लेती हैं बहिखाते,
मेरे सिर पर बहुत उधारी हो गई है।

कोई हकीम बताओ, कोई तो दवा करो,
मुझे ख़्वाब देखने की बीमारी हो गई है।

जैसे नचाती रही है वैसे नाच रहे हैं हम,
ये ज़िंदगी जैसे एक मदारी हो गई है।

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25 MAR AT 0:24

As she was about to sleep , she heard his voice from behind,
Why do you still search for me in others?

She froze, her fingers clutched the sheets, her breath uneven, as if his absence had settled into the very air she breathed. Tears slipped down, silent confessions of a love that never learnt to let go.

'Because no matter how far you go, you are still the only home my heart knows.'
'Because I would rather drown in the silence you left behind than seek comfort in a voice that isn't your's.'
'Because even after all this time, if you turend around, you'd still find me waiting.'

A shaky breath. A sad smile through the tears.

"And when grief pulls me back into it's arm's, when the earth reclaims me as it's own. I only hope that mud carries your scent, so I can rest in the warmth of you, even in Death."

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15 FEB AT 12:15

चीज़े बिख़री हुई सी हैं
वर्ना कमरा इस से ज्यादा खाली है।

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14 FEB AT 21:00

मैं शब्द सी सीमित प्रिये, तुम शब्दों का अर्थ अनंत,
तुम बिन मैं मौन की भाषा, संग तुम्हारे जिवन संगीत।

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5 FEB AT 10:22

थोड़े गिले शिकवे हो गए हैं अपने रब से
किस्मत हावी हुई है, मेरी मन्नतों पर जब से।

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10 JAN AT 21:53

मैं बासी रोटी पर एक उम्र बिता आया हूँ,
फिर भी तक़दीर के सफ़हे नहीं पलट पाया हूँ।

मैंने ख़्वाबों को भी भूख का सबक़ सिखाया है,
चाँद चाहा मगर मुट्ठी में साया ही पाया है।

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