✨ लोहार ✨
आधुनिकता की बात छोड़िए, उस समय लोहारों का बड़ा वर्चस्व था।
यह बात जमे शहरों या कस्बों की नहीं, गांँवों की थी, जो दिलचस्प था।✨
मेरा बचपन मेरे नाना गांँव में बीता वहाँ पर उस समय बिजली नहीं थी।
मिट्टी तेल से चिमनी जलती थी, राहगीरों के लिए पक्की गली नहीं थी।✨
आय का जरिया खेती ही था तो हल चलाने सभी तैयार थे।
लोहे के लिए फैक्ट्री नहीं, हल के फाल के लिए लोहार थे।✨
उस समय मैं बच्चा था, देखा कि यहाँ काम एक साथ करना पड़ता है।
पति पत्नी एवं बच्चे, सभी को थोड़ा बहुत दो दो हाथ करना पड़ता है।✨
न ट्रैक्टर था न हारवेस्टर, हल ही खेत जोतने का साधन था।
भूमि उपजाऊ थी, उपज भी अच्छी थी, अच्छा उत्पादन था।✨
आज के उन्नत प्रौद्योगिकी वाले इस युग में लोहारों के कार्य भुलाए नहीं जा सकते।
परिंदे यदि पर मारकर रफूचक्कर हो जाएँ तो वापस उन्हें बुलाए नहीं जा सकते।✨-
देखों किसानों की ये ट्रैक्टर रैली,
अन्नदाताओं को भी तो जगना पड़ा,
अपने ही हक के लिए लड़ना पड़ा,
क्युकी सत्ताधारी अपना स्वांग रचाए बैठा है।-
😀😀😀जिन महंगी गाड़ी वालो के लिए तू अपनी औकात दिखा गई,
मेरे ट्रैक्टर की एक टक्कर काफी हे तुझे उन गाड़ियों की औकात समझाने के लिए।😋😋-
आओ किसानी करें
धरा की निशानी धरें
बीज से फसल उगे
उगे संग जिंदगानी भरें
हल न बैल न ट्रैक्टर
किसानी कैसे निभानी करें
धरा से विमुख गतिविधियां
कैसे हरितिमा सुहानी तरें
धरती की सोचें किसान संग
कृषि की निगहबानी करें
धूप, सर्द, पसीना जिसका श्रम
सुखद उसकी हर कहानी करें।
धीरेन्द्र सिंह-
अब कहाँ के #अर्राsS_तsSता,
#ट्रैक्टर के ठक_ठक सुनावत हे ।
अब किसान नहीं #जीतू
#मशीनी_इंजन गीत गावत हे ।।-
✍️"शहरों के कामकाजी ट्रैक्टर"✍️
शहरों में अचानक से देखते ही यहाँ पे ट्रैक्टर;
मुझे आज भी वो पुराने जमाने याद आते हैं।
जब केवल साहूकारों के ही होते थे ट्रैक्टर!
तो देखते ही गाँव के वो घराने याद आते हैं।-
इस IAS-YAS के दौर में, मैं खेती पर मरने वाला लड़का हूं...
कार चलाने वाली पर नहीं ट्रैक्टर चलने वाली पर मरने वाला लड़का हूं...-