तुम जब मेरी पहचान में आयी
फिर कम ही मेरे ध्यान में आयी
बस एक तिरी मुस्कान देखकर
जान हमारी जान में आयी
तुम जानाँ मेरे हिस्से में
बहुत बड़े नुकसान में आयी
आज दोवारा तुम्हें देखकर
कुछ धूप सी रोशनदान में आयी
ये अज़ब तर ये इक पहलू भी
अब नज़र तुम्हारी बान में आयी-
फिर किसी बात पर एतिराज कर देंगे
हम मियां एक दिन तुम्हें नाराज कर देंगे-
बीते लम्हें फिर से याद आ गये
आँखो में अश्रु से झिलमिला गये
हुस्ने अदब ये लर्जीशे ये शायरी
आप हमें कितना कुछ सिखा गये
जो तेरी बरात लेकर आये थे
याद के झरोखे भी मिटा गये
तीरगी ही तीरगी है हर जगह
रौशनी के पाँव डगमगा गये
माफ़ कीजियेगा जो मैं सच कहूँ
आप मेरी ज़िन्दगी को खा गये-
नज़्म- कितने चेहरे
एक शख़्स के कितने चेहरे
चेहरों पर से उतरे चेहरे
शाम पहर ही ढल जाते है
सुब्ह पहर के खिलते चेहरे
है इक ख़्वाब-ए-चश्म-ए-बिनाई
चाँद से जैसे उनके चेहरे
एक नज़र में भा जाते हैं
सबको भोले भाले चेहरे
गौर करूँ तो याद आते है
यकसर भूले बिसरे चेहरे
है इस जग में बड़ा अचम्भा
तुमसे मिलते जुलते चेहरे-
पटोला साड़ी पहनो,
या कोई आम पैरहन,
अंजाम ए ज़ीस्त है
आख़िर कफ़न होना।
हो ताजमहल या
फिर कोई आम मकबरा
अंजाम ए मुहब्बत था
फ़ना होना दफ़न होना।-
जॉन के इश्क में कुछ ज्यादा ही झुक रहा हूं मैं
कुछ दिनों से खून ही खून थूक रहा हूं मैं-
अपना भी नहीं हैं तो पराया भी नहीं है
वो शख्स मुझे धूप में साया भी नहीं है
मैं उसके पास जाने के लिए बेक़रार हूँ
और उनसे मुझको बुलाया भी नहीं हैं
मुझे ऐसा लग रहा हैं वो साथ मेरे हैं
यानि मैंने उसको गवाया भी नहीं हैं
बेकाम सा बैठा हूँ उसी के इंतजार में
कोई काम मेरे हिस्से आया ही नहीं है
यू बातों ही बातों में उसने पता बताया
जैसे कि उसने पता बताया भी नहीं हैं-