खुलेआम चोरी हो जाते है ख़्वाब आजकल मेरी आँखों से,
कोई जाना-पहचाना लगता है, चलो उसको माफ करते हैं।-
चोरी करके इज्ज़त पाकर भी क्या करोगे
दूसरों के लफ्ज़ों को चुराकर भी क्या करोगे
लिखना नहीं आता तो सीख लो आसान है
अपना नाम किसी से मिलाकर भी क्या करोगे
मान लिया तुम माहिर हो चुराने में अल्फाज़ों को
दूसरे के क़ाफिये ख़ुद से सजाकर भी क्या करोगे
जिससे भी चुराते हो वो बड़ी श़िद्दत से लिखता है
इस तरह से ख़ुद को ऊपर उठाकर भी क्या करोगे
उसका लिखना आपको पसंद है समझ गया मैं
इस तरह दूसरों के दिल में समाकर भी क्या करोगे
लिखना इतना मुश्किल भी नहीं लिख कर देखो
इस तरह दूसरों को नीचे दबाकर भी क्या करोगे
जिसके ख़्वाब हैं वो उसी पर अच्छे लगते हैं "आरिफ़"
ताबीर उनकी अपनी कलम से बहाकर भी क्या करोगे
उसके "कोरे काग़ज़" हैं वो चाहे लिखे या फ़िर फाड़ दे
तुम उनको अपने अल्फाज़ों से जलाकर भी क्या करोगे-
लोग तो जिंदगी चुरा कर ले गये
तुमने तो सिर्फ शब्द चुराये हैं-
कौन चुरा कर ले गया उनकी हिचकियाँ
समझते हैं वो कि याद नहीं करते हम
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कौन चुरा ले गया इस समंदर से मोती
दर्द जितना भी हो अब आँखें नहीं रोती-
जब से होने लगी है शब्दों की चोरी
हुआ है अंदाजा शब्दों की कीमत का-
कॉपी में कट करके पेस्ट करना,
होता है, लेखनी को वेस्ट करना...
यार बहुत मजा आता है चखने पर,
खुद का लिखा हुआ टेस्ट करना.
चोरी मत करना भले ही कुछ दिन,
दिमाग न चले बेइंतेहा रेस्ट करना.
धीरे धीरे हर कोई सीख ही जाता है,
एहसासों को कलम से कनेक्ट करना.
आसान होता नही आंखों में दर्द लेकर,
सबके सामने खुश होने का एक्ट करना.
तुम आना चाहते हो मेरे करीब तो,
आर्डर मत देना only रिक्वेस्ट करना.-
उनकी चोरी पर झंडे नहीं गाड़ता
ओरिजिनल लिख कर हमने कौन से झंडे गाड़े हैं-
✍️~"बादशाह की चोरी - एक हिम्मत"~
वक्त आया ही कब था जो जाता, आखिर गुहार कर दी।
बादशाह सिंहासन से उठाने की मंजूरी स्वीकार कर दी।
बेनज़ीर थी बंदिशें पर बादशाह हमने दरबार पार कर दी।
हिम्मत तो ज़रा न था, बस शिकायतों ने शर्मशार कर दी।-
आज एक मुट्ठी धूप चुराऊँगा
और भर दूँगा उजाला तुम्हारी रातों में-