मिज़ाज़ यूँ ही ना
चिड़चिड़ा कीजिए
कोई बातें छोटी करे
तो दिल बड़ा कीजिए-
मित्र तुम गलत नहीं,
पर ये चिड़चिड़ाहट,
ये बौखलाहट,
इस बात की सूचक है,
की समय आ गया है,
अपेक्षाऐं कम रखने का।-
मुझे शोर से डर लगता है
चिड़चिड़ाहट होती है,सहम जाता है मन
कोलाहल जब चारों ओर तेज़ी से फ़ैले
तो यूँ लगता है कि जैसे किसी ने
मेरी कीमती चीज़ भरे बाज़ार में उड़ेल दिया हो
यूँ तो ग़ुस्सा ख़ूब है मुझमें
पर उसे झेलने की ताक़त में ज़रा कमज़ोर हूँ
मानसिक अवहेलना की दशा से विकृत सी हो जाती हूँ
यही वो समय है,जब मैं,मैं होकर,मैं नहीं रहती😶
और लोग पूछते है,क्या हुआ?
क्या कहूँ,बिल्कुल अनसुलझी सी बात लगती है
शब्दों की लड़ियां फटाकों की भांति फूटती रहतीं है,
अन्तर्मन में एक दूसरे को पछाड़ती,
लोग कहते है,कितनी बिंदास कुड़ी है तू
आओ तुम्हें भी हँसना सिखाऊँ
कोई तो आख़िर असलियत में मिले
ऊपरी छुवन तो हर कोई कर ले
गहराइयां तो रूह में छिपी है-
उलझन, चिड़चिड़ापन,
बात बात पर नाराज होना,
नींद न आना, भूख न लगना,
तबियत नासाज़ रहना,
ये लक्षण किसी मौसमी बीमारी के नहीं
अक्सर होता है ये सब,
जब उनसे बात नही होती, मुलाकात नहीं होती....
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चिड़चिड़ इतनी भी ना कीजिए, कि चिढ जाए सब लोग
खुद की इज्जत ना रहें,हँसे आस-पड़ोस
क्या लेकर के आया है,क्या ले जाएगा सामान
थोड़ी इज्जत बचाए ले,अरे मूर्ख इंसान
कटु वाणी बोल के क्या साबित हो जाए
जितना ऊंचा बोलेगा,उतना नीचे गिर जाए
छोटा बड़ा यहाँ कुछ नहीं, सब कर्मों से होय
ओछी बातें करके ,तू बड़ा कहाँ से होय
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