मन आतुर है मिलन को
संभावना ज़रा,अभी कुछ अधूरी है
तुम पलटना उस राह की ओर
जहां मुड़कर तुम्हें कोई अपना दिखे
उस देर शाम तुम्हारी याद आई
रात हुई और तकिए ने नमी पाई
प्रयास को सालों से लगे है
मन्नतें यूं महीनों में पूरी नहीं होती
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चोट के बाद अब तकलीफों से लगाव हो चला है
राहत क्या होती है भला जान भी क्या पाते?-
प्रेम में हार जाना, जीत जाने से कहीं बेहतर होगा शायद
ये समझने में मुझे कई साल लगे हैं
बर्बाद होने से ठीक पहले, आबाद थे
तुम जिस तलक से मुझे पुकार रहे थे
मुझे कुछ स्पष्ट नज़र नहीं आ रहा था
मैं तुम्हारी ओर सिर्फ इसलिए चल रही थी
कि मुझे तुम्हारी आहट उस दिशा से सुनाई दी
हाथ की मेंहदी के रंग से मैं अब अनुमान लगा लेती हूं
केमिकल भी वो असर छोड़ नही पाते
कई रोज़ से शादी ब्याह के चक्कर काट रही
महसूस कर के कभी हमने भी कोई सपना देखा था
जोड़े देखकर मेरे आंखों में आंसू आ जाते है
क्योंकि नज़र के सामने अब तुम नही आते
कुछ फासले,नजदीकियों से कहीं बढ़कर होते हैं
इसमें समय और दूरी का गणित नही लगाया जाता
आंखो की चमक में कुछ तो अधूरापन है
बांकि हंसने में तो मैं अब भी कमी नहीं करती
हम नहीं छूट जाते गर,
तुम भी मेरी ओर कुछ दूर तो चलते।
एक तरफा भागने से,एक थककर गिर जाता है
और दूसरे तक शायद कभी ख़बर ही नहीं पहुंचती।-
ख्वाहिशों के बवंडर में
एक मौन परिंदा है
कभी बाप,कभी भाई,कभी साथी,कभी बेटा
जाने कितने रूपों में
हमें निश्चिंत कर के जिंदा है
कभी वक्त का पलड़ा भारी पड़ा
कभी मुंह की खानी पड़ी
पर रहा वो सदा मौन
चुप रहा, उसने सिर्फ सीमित बोला
स्त्रीवादी तमाचो से अक्सर पीड़ित रहा
सम्मान के आड़ में बन जाता जो अंधा है
हे,पुरुष तुम पर ऋणी है दुनिया
कर्तव्य का बोझ तुम पर ही तो लादा गया है न
समाज चाहे जितना भी गंदा है
international men's day
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दौड़ने भागने के सफ़र में
कौन किसका अपना है
ठहराव की खोज में
टकराता कोई सपना है
मंजिल की होड़ में
हर कोई भाग रहा
रातों को सुलाकर
कोई अपना जाग रहा
कुछ पहेली असमंजस सी
कुछ भावार्थ प्रतिकूल है
शरीर गर्मी में कांप रहा
मौसम के अलग उसूल हैं
दूरियों को नजदीक महसूस
कराता जैसे कोई समीर
जिदंगी किसी मोड़ पर बन
जाती है पत्थर की लकीर-
उस रोज़ चांद
मुझसे टकरा रहा था
पहली दफा
हमनें न उसे देखा
न वो हमे देख पाया
तस्वीरों की एल्बम
कुछ उसने टटोली
कुछ मैने खंगाली
बातें बढ़ी
कुछ खूबसूरती मिली
कुछ दाग को नकारा गया
चांद आज भी दूर है
जैसे ही कमरे की
भीतर की रात की रोशनी
मैं खोजती रही
मुझे बस वो मिला।
कुछ मुलाकातें ऐसी होती है
चेहरे नही मिलते
बस भावनाएं मिल जाती है-
तुम्हारी चाहत में
तुझे खोजते खोजते
कितनी दूर चले आए हम
तुमसे नज़रे मिले न मिले
नज़ारे कितनी दूर सजाए हम
आखों में जैसे पर्दा सा हो गया
कितना कुछ दिख रहा था
पर जैसे धुंधला सा हो गया
कहने को ना जाने
कितने ही बात है
पर सब कुछ कहा जाए
अब वो कहां हालात है
एक ज़माने में
बहुत बोला करती थी मैं
अब शांत होते होते भी
जमाना सा लग रहा है
आख़िर,देर हो जाना
बेहद काली रात है
~पूजा देवांगन-
तुम्हारी चाहत में
तुझे खोजते खोजते
कितनी दूर चले आए हम
तुमसे नज़रे मिले न मिले
नज़ारे कितनी दूर सजाए हम
आखों में जैसे पर्दा सा हो गया
कितना कुछ दिख रहा था
पर जैसे धुंधला सा हो गया
कहने को ना जाने
कितने ही बात है
पर सब कुछ कहा जाए
अब वो कहां हालात है
एक ज़माने में
बहुत बोला करती थी मैं
अब शांत होते होते भी
जमाना सा लग रहा है
आख़िर,देर हो जाना
बेहद काली रात है
~पूजा देवांगन-
जब तारें टूट जाते हैं
जमीं पर टकराते हैं
उनका टूटकर टकराना
जमीं को क्षति पहुंचाता है
सब कुछ अचानक
और तेजी से घट जाता है
न उसे रोका जा सकता है
न उसे संभाला जा सकता है
एक टीस जो हरपल भारी होती है
असमय जाने वाले भले लोग
वही तारें हैं जिनके जाने का गम
हमारे हृदय रूपी जमी पर
एक विदारक क्षति है-
बारिश की बूंदे कितने आंसूएं छिपा लेती हैं
उसी तरह जैसे हंसता हुए चेहरा, मायूसियां-
मैं, तुम न बन सकी
तुम, मैं न बन सके
ये मैं - तुम बनने की सफर में
हमने "हम" को खो दिया-