रेखा बाँके   (रेखा बाँके✍)
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Joined 21 January 2019


Joined 21 January 2019

ना कुरेद राख के ढेर को
दबी हुई चिंगारी भी हो सकती है

चिंगारी है तब तक तो कोई बात नहीं
जरा सी हवा से आग भी बन सकती है

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उसकी सांसों का संगीत ,मेरे कानों में बजता रहा
मैं सिमटी सिमटी जाती रही,वो और और कसता रहा
सुध-बुध दोनों की हवा हुई ,रिमझिम भादौ बरसता रहा
चाय ठंडी होती रही ...... धीरे धीरे इश्क़ सुलगता रहा

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मन धीरे धीरे समझता रहा
तन का व्याकरण
तन भी सुलझाने लगा
मन का समीकरण
हठ एक दूजे की तोड़ रहे
बढ़ता जाता वशीकरण
उलझे......सुलझे
सुलझे .......उलझे
होता रहा एकीकरण

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त्रिभुवन का स्वामी ,सृष्टि का पालक
जिसके मुख में ब्रह्मांड समाए

कितना मनोहर मुखड़ा लगता
चुरा चुरा कर माखन खाने

कछु खाएं कछु मुख लपटाए
कछु भूमि पर दे बिखराए

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कनिष्ठिका पर गिरिराज उठाए
मुख में पूरा ब्रह्मांड समाए
जिसकी भृकुटी से त्रिभुवन डोले
कंस की सेना थर्राए
पूतना के प्राण खींचे
स्तन से जो होंठ लगाए
कालिया नाग का मर्दन कर
एक छोटी सी गेंद ले आए
द्वारकाधीश भी ऐसा जो
अंसुवन से मित्र के पैर धुलाए
युद्ध श्रेत्र में बना सारथी
कर्तृत्व पथ का पाठ पढाये

प्रेम में दास बन बैठा जो
कैसी-कैसी लीला रचाए
मुठ्ठी भर माखन खाने को
गोपियों को नाच दिखाए

-रेखा बाॅंके ✍🏻



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हर एक ने अपने मुताबिक
वजूद उसका मोड़ दिया
79 साल की बूढ़ी डोकरी
खुद के मायने ढूंढा करती है

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ये कर्ज़ है हर उस सांस पर ,जो निडर होकर हम ले रहे
आजादी को सिर्फ तारीख कहना ,मुनासिब नहीं, मुनासिब नहीं

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मैं मूरख अज्ञानी
संसार की मोह माया में
लिप्त एक छोटा सा जीव हूं
मेरे लिए भला क्या,बुरा क्या
रीति क्या, नीति क्या

मेरी बुद्धि के तुम सारथी हो
जिस तरफ चलाओगे चल पड़ेगी

तो अब देख लो
मुझ पर आरोप आए तो आए
तुम्हारे सारथी होने पर ना कोई
कोई प्रश्नचिन्ह ना लगने पाए

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आज़ाद आदमी ने लिया है ये फ़ैसला
उसके सिवा आज़ाद कोई ना रहेगा

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मेरी शक्ल देखकर तो आईना भी बोलता है
जा बहन एक बार और मुंह धोकर देख ले

लेकिन जब मैंने साफ़ शब्दों में
जुकरबर्ग को कहा-
"मैं तुम्हें अपनी फोटो यूज़ करने की इजाज़त नहीं देती हूं"

कसम से कलेजे को ठंडक पड़ गई 😜

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