किनारे दूर होते होते बहुत दूर हो गये,
पानी के छपाकों की आवाज़ भी डूब गई, गुम हो गयी,
दिल मे ऐसे संभालते हैं गम,
जैसे ज़ेवर संभालता है कोई,
रूठ गए, नाराज़ हो गए....
हाथ से अंगूठी उतारी, वापस कर दी,
बांहों से कंगन उतारे, सात फेरों सहित लौटा दिए,
लेकिन बाकी ज़ेवर जो दिल मे रख लिए थे,
उनका क्या होगा?
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है.....
गुलज़ार
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