हम किस डगर चले लड़ते झगड़ते ,
ऊंची नीची आवाजों की लहरों में फिसलते l
तूफान के समान अपना क्रोध दर्शाते ।
जो क्रोधित नेत्रों के सामने अगोपन होता ,
उसे अपनी रोष की ज्वाला में ध्वस्त करते ।।
हम किस डगर चले लड़ते झगड़ते ,
अपशब्द की ऊर्जा से स्वयं के मुख मलीन करते ।
ध्वनि के द्वंद से औरों के हृदय में आक्रमण करते ,
प्यार से ना जीत औरों को स्वयं से दूर करते ।
हम किस ओर चले लड़ते झगड़ते ,
घृणा आक्रोश की ज्वाला में लड़ते झगड़ते ।
अपनी सुध बुध खो , प्रेम का मूलांक खो ,
स्वयं को अपने परिजनों से दूर करते ।।
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