इज़हार को हेर - फेर समझ, ना नजरंदाज कर,
ज्यादा - सा मैं करूं, तू थोड़ा - सा तो प्यार कर,
झुकी नज़र तेरी, उन्हें उठा कर इज़हार कर,
मैं हूं तेरा, ओ ज़ालिम थोड़ा तो ऐतबार कर।
ये मुस्कान, ये आंखें हसीं , सब कमाल है,
इनकी तारीफ़ में शब्दो की भी क्या मजाल है,
ये बिंदी, ये बालियां, मुझे खींचे तेरी तरफ,
तुझे महसूस हो, मेरे दिल का जो हाल है।
अकेली हैं ये तन्हा शामें, बस तेरा इंतज़ार है
एक तेरे दीदार को, कब से बैठीं तैयार हैं,
इज़हार को हेर - फेर समझ, ना नजरंदाज कर
ज्यादा सा मैं करूं , तू थोड़ा सा तो प्यार कर।
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