साहिबा...मिर्जा ने आखिरी साँस में क्या कहा होगा..
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इज़हार को हेर - फेर समझ, ना नजरंदाज कर,
ज्यादा - सा मैं करूं, तू थोड़ा - सा तो प्यार कर,
झुकी नज़र तेरी, उन्हें उठा कर इज़हार कर,
मैं हूं तेरा, ओ ज़ालिम थोड़ा तो ऐतबार कर।
ये मुस्कान, ये आंखें हसीं , सब कमाल है,
इनकी तारीफ़ में शब्दो की भी क्या मजाल है,
ये बिंदी, ये बालियां, मुझे खींचे तेरी तरफ,
तुझे महसूस हो, मेरे दिल का जो हाल है।
अकेली हैं ये तन्हा शामें, बस तेरा इंतज़ार है
एक तेरे दीदार को, कब से बैठीं तैयार हैं,
इज़हार को हेर - फेर समझ, ना नजरंदाज कर
ज्यादा सा मैं करूं , तू थोड़ा सा तो प्यार कर।-
हो कैसे बयां, अंदर ज़लज़ला और तूफ़ान है,
मेरी खामोशी देख, यहां हर शख्स हैरान है,
कभी हुआ करता था जो तलवार की धार सा,
वो शख्स अब खुद के लिए बना म्यान है।।-
देखो ये भी क्या कमाल की बात हुई है,
आसमां की जगह आंखों से बरसात हुई है
कभी हंस कर रोज पूछता था हाल मेरा,
और अब एक अर्से से नहीं बात हुई है।-
तू बात कर ना कर तेरी याद आती रहेगी,
सुन जान की फिक्र छोड़ दी अब हमने,
देख , ये जान यूहीं अब जाती रहेगी।
एक तेरा छोड़ जाना याद है मुझे,
कभी मौत पर भी न रोया जो शख्स,
वो फूट कर रो जाना भी याद है मुझे।
ये कैसे दिन मेरे करीब आ रहे हैं,
मैं सपने ना भी देखना चाहूं उसके,
फिर भी वो रातों रात मुझे आ रहे हैं।
तुम जब से गए हो इंतजार में है हम
ऐसा न हो की तुम आओ और,
देखो , हम पर फूल लगाए जा रहे हैं।-
'कारगिल दिवस ' का दिन आज आया,
वीरों ने जिसके खातिर खून बहाया
जहां जीवन मुश्किल ठंडी चोटियों पर,
वहां थल सेना ने 'ऑपरेशन विजय' चलाया
जहां होती उड़ाने मुश्किल , वहां,
वायु सेना ने 'ऑपरेशन सफ़ेद सागर' लाया
फिर घेर कर अरब सागर में उनको,
जल सेना ने 'ऑपरेशन तलवार ' चलाया
तुम सहादत उनकी भूल ना जाना,
जिन्होने देश खातिर खून बहाया
नमन में उनके सिद्दत से सर झुकाना,
जो हर वीर ने था साहस दिखाया
हिम्मत देखो उन वीर जवानों की,
हर चोटी पर फिर से तिरंगा लहराया
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मिले थे दो परिंदे एक अंजान डाल पर,
कुछ तो बात ज़रूर फिर हुई होगी ।
एक तूफ़ान गुजर चुका था ज़िंदगी से,
फिर उसे देख राहत तो मिली होगी ।
कभी सो जाता था जो वक्त से पहले,
उसके इंतजार में हद भी की होगी ।
गलत न था दोनों में से एक भी,
गलतफहमी कहीं तो रही ही होगी ।
वो एक अर्से से इंतजार में उस डाल पर
कुछ तो मोहब्बत उसने भी की होगी।-
चंद शब्दों में सुलझ जाता मसला मेरा,
उसकी ख़ामोशी ने खेल बिगाड़ दिया
छोड़ गुरूर, कई बार बढ़ाया हाथ मैंने,
ना कर बात, उसने पल्ला झाड़ दिया।।
माना तू हुस्न है, एक गुरूर रखती है,
यकीं कर मेरा, हस्ती मेरी भी नहीं सस्ती है
मैं खुल कर हर इज़हार को तैयार हूं,
जो तू बुढ़ापे तक जाने की हिम्मत रखती है।।
ना दूर जाने की हिम्मत है, ना तू पास है,
लिखता जरूर हूं , पर शब्द मेरे उदास हैं
देख मिटा दे दूरियां , तू दिल से अब,
वर्ना मजार पर दिए का दिन बहुत पास है।।-
मेरी हद क्या है , ये तुम जान नहीं पाए,
ना जाने कौन - कौन से तुमने खेल रचाए।
मैं यकीं दिलाता रहा ,तुम हंस कर टालते गए,
मोहब्बत थे तुम , ये पहचान ही नहीं पाए।
ना मैं रांझा शहर का, ना ढूंढी मैंने कोई हीर है,
मैं आज भी वहीं खड़ा हूं, तुम पलटकर नहीं आए।
और हां , ना खाई मैंने झूठी कसमें तेरे साथ में,
निभानी कैसे हैं , ये मुझे याद आज भी है।
और ये खुले आसमां के दोनो परिंदे क्यूं दूर हैं,
लाख कोशिश, पर शक की दीवार आज भी है।
तुम इस खेल को, खिलाड़ी होकर खेल रहे,
'गुरु' चुपचाप देख रहा, ये तुम जान ही नहीं पाए।-
कि बरस लिए हो तो थम जाओ अब,
वर्ना हम जो रोए संभाल नहीं पाओगे,
और तुम क्या रोए याद करके उसको,
जो हमने किया, शर्म से डूब मर जाओगे।
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