शहर की गलियां नहीं गांव की पगडंडिया..
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जिंदगी हसीं हो जाती है
वक़्त की जंजीरें जो पैर नहीं बाँधती हैं
घुमक्कड़ दोस्त साथ होते हैं
बचपन को राह जो दिखाते हैं
गलियाँ छोटी हो जाती हैं
दोस्ती के पहिये से जो नापी जाती है
घुमक्कड़ दोस्त साथ होते हैं
बचपन को राह जो दिखाते हैं-
शहर की गलियां
कुछ उल्टी सी आदत कुछ सीधी सी गलतियां
कुछ बिना जाने कुछ जान कर की गलतियां
वो जलेबी की दुकानें 50 पैसे के समोसे खाना
वो कभी रूठ जाना कभी खुद ही मान जाना
मुहल्ले की दादी की की गाली कभी पड़ोसी का
बकरी भगाना कभी किसी गली से
तो कभी किसी गली से दौड़ लगाना वो लुक्का छिप्पी
वो हर गलियां आज भी याद आती पर हम हैं गली है
पर वो वक़्त नहीं कभी याद करता ग़ुज़रे हुए पल
चलो बेवक़्त ही सही शहर की गलियां
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चकाचौंध से रौशन हो चली हैं 'शहर की गलियाँ'
फ़ीकी हो गई मिट्टी की सौंधी खुशबू
सुनी हो चली हैं 'गाँवों की गलियाँ..।'
छोड़-छाड़ के घर-बार अपना
छोड़ पुराने सखाओं की टोलियाँ..
पुरानी यादों को पुरानी गलियों में छोड़
जीने चल देते हैं 'कितने' ही नई खुशियाँ..।
गलियाँ जो कभी गूंजती थी यारों के ठहाकों से
आज पसरी रहती हैं वहाँ वीरानियाँ..
घुमक्कड़ी करते थे दोपहर में भी
शामों को याद आती हैं वो बिछड़ी यारियाँ..।
शहर की गलियाँ भी अपनी सी लगती हैं..
फिर भी यादों के झरोखें में तो
आज भी महकती हैं गाँवों की क्यारियाँ..।
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बेतरतीब सी उलझी हुई आपस मे
शहर की इंसानी पुतलों से भरी गलियां
एक दूसरे से टकराते,लड़ते,झगड़ते
अकड़ते,बचते,सहमते और धमकाते
अजीब ढंग के व्यवहारों की गलियां
शहर की इंसानी पुतलों से भरी गलियां
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अकड़ बकड़ हम दोस्त घुमक्कड़,
दिल के राजा जेब से फक्कड़।
घुम घुम कर बन जाये घनचक्कर,
न घर का डर न पढ़ाई की फिकर।
दुनिया घुमे मिलने का स्थान नुक्कड़ ॥-
क्या कहूँ में दोस्तों के बारे में साले सब नगीने है
घर के आंगन में लगा तुलसी का पौधा
उसके जैसे सब सुख दुख में काम आने वाले कमीने है-
Dream : I want to travel the world
Reality : I love being lazy and lie down on the couch...-
घुमकड भी हम, खोजी भी है हम
पानी का उड़ता फ़व्वारा भी हम
लोगो की नजरो में आवारा भी हम
पर दोस्त मस्तिखोर भी है हम
धरती आसमा का मिलने वाला छोर भी है हम
ज़िंदगी से वक़्त चुराने वाले चोर भी है हम
उड़ते पंछियों के जैसे बादलों के उस ओर भी है हम
उम्मीद को तराशने वाले जौहरी भी है हम
आशाओं को बाँधने वाली मज़बूत डोरी भी हम-
Sehar ki galliyan...
Park main khelte balak, Khali bhare rickshaw chalak. Ate jate feri bale, bhagti daudti tej jindagi, mauj masti aur main.-