Varsha Srivastava   (© Varsha Srivastava)
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Joined 19 April 2018


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12 AUG 2022 AT 22:07

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11 AUG 2020 AT 19:22

वो इंसान तो बड़ा अच्छा था,
लेकिन वक़्त ही बेवफ़ा निकला।

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29 JUN 2020 AT 0:24

अप्राप्त


(पूरी कविता अनुशीर्षक में)

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28 JUN 2020 AT 19:38

बहुत कर ली ख्वाहिशें
अब हक़ीक़त से रूबरू होते हैं।
जो मिला, वो हैं सबसे खूबसूरत
उसी से मुक्कमल जहां करते हैं।

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4 JUN 2020 AT 12:48

तुम्हारे न होने से,
बंद किताबों के पन्नें
कभी न खुलेंगे...

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8 MAY 2020 AT 17:47

मैंने नहीं जाना प्रेम का अर्थ
लेकिन जब भी तुम्हें देखा
प्रेम होता गया

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29 APR 2020 AT 18:46

मरती नहीं कला, न उसका कलाकार
सिर्फ़ ज़िन्दा रहना, और ज़िन्दा रहना
दो अलग बात हैं

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18 APR 2020 AT 11:27

उड़ता पंछी
रुक कर विचारें
पेड़ हैं नहीं

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10 APR 2020 AT 12:30

//  जल, प्रकृति और पर्यावरण //

तपती भूमि झूम उठती हैं
जल जो कुछ बूंदें गिराता हैं।
खुश होकर बनती धरा उपजाऊ
किसान अन्‍न उगाता हैं।
अन्‍न से बनते हैं तंदरूस्‍त
पशु-पक्षी व सारे जीव।
जीवों को संतुष्‍ट देख
पर्यावरण संतुलित हो जाता हैं।
शुरूआत जल से ही तो होती हैं
धरा बिन जल के बंजर होती हैं।
ज्‍यों लगा दिये कुछ पेड़ हमने
प्रकृति खुश होती हैं।
देखो! कैसे सूना पड़ा है
पानी का मटका।
तड़प रहे हम, तड़प रहे तुम
बीज भूमि में ही हैं अटका।
अब तो बचा लो थोड़ा पानी
भूमि को भी नहाने दो।
प्रकृति रहेगी हरी-भरी
पर्यावरण को मुस्‍कुराने दो।
पर्यावरण को मुस्‍कुराने दो।

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7 APR 2020 AT 23:19

रिश्ते, नाते अब और करीब आ रहे हैं,

     जैसे-जैसे हम घरों में खुद को पा रहे हैं।

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