मसला ये नहीं कि वो ख़ामोश क्यूं हैं,
उन्हें शिक़ायत भी हैं, तो हमसे क्यूं नहीं...-
उदास शाम सी हूँ मैं,
पर जिजीविषा कभी कम नहीं... read more
मैं तुम्हें रोज रात में एक पत्र लिखती हूँ,
ये जानते हुए भी
कि इन पत्रों के नसीब में नहीं हैं,
तुम्हारे हाथों का स्पर्श....-
उसके दीदार की आस में
सदियाँ बीत न जाय कहीं...
मुझको डर इस बात का हैं,
मैं मर न जाऊँ कहीं...-
मैं और तुम
नदियों के दोनों किनारों पे खड़े हैं
एक दूसरे तक आने के लिए
नदी को काटना पड़ेगा
और हमें तैरना भी आता नहीं-
बहुत थे मौक़े
तुम से जुदा होने के,
मैंने चुना लेकिन एक ही रहना।
मुझे अचम्भा नहीं अब,
कि तुम्हें चाहिए थी
मोहब्बत शिद्दत वाली।
और मैं एक आम इंसान,
मुझे आती नहीं बातें बनानी।
मैं डूब जाती हूँ,
प्रेम तैर जाता हैं,
आती नहीं मोहब्बत मुझे शिद्दत वाली।
यही सम्बल हैं मेरा
किसी रोज समझोगे तुम,
प्रेम तो बस प्रेम होता हैं,
कोई मापक नहीं हैं इसका।
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बहुत कर ली ख्वाहिशें
अब हक़ीक़त से रूबरू होते हैं।
जो मिला, वो हैं सबसे खूबसूरत
उसी से मुक्कमल जहां करते हैं।-