Varsha Srivastava   (© Varsha Srivastava)
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Joined 19 April 2018


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12 MAY AT 22:45

मसला ये नहीं कि वो ख़ामोश क्यूं हैं,
उन्हें शिक़ायत भी हैं, तो हमसे क्यूं नहीं...

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6 MAY AT 0:14

मैं तुम्हें रोज रात में एक पत्र लिखती हूँ,
ये जानते हुए भी
कि इन पत्रों के नसीब में नहीं हैं,
तुम्हारे हाथों का स्पर्श....

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4 MAY AT 10:23

उसके दीदार की आस में
सदियाँ बीत न जाय कहीं...
मुझको डर इस बात का हैं,
मैं मर न जाऊँ कहीं...

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4 MAY AT 9:57

मैं और तुम
नदियों के दोनों किनारों पे खड़े हैं
एक दूसरे तक आने के लिए
नदी को काटना पड़ेगा
और हमें तैरना भी आता नहीं

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12 AUG 2022 AT 22:07

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29 JUN 2020 AT 0:24

अप्राप्त


(पूरी कविता अनुशीर्षक में)

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1 APR 2019 AT 20:04

बहुत थे मौक़े
तुम से जुदा होने के,
मैंने चुना लेकिन एक ही रहना।
मुझे अचम्भा नहीं अब,
कि तुम्हें चाहिए थी
मोहब्बत शिद्दत वाली।
और मैं एक आम इंसान,
मुझे आती नहीं बातें बनानी।
मैं डूब जाती हूँ,
प्रेम तैर जाता हैं,
आती नहीं मोहब्बत मुझे शिद्दत वाली।
यही सम्बल हैं मेरा
किसी रोज समझोगे तुम,
प्रेम तो बस प्रेम होता हैं,
कोई मापक नहीं हैं इसका।

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11 AUG 2020 AT 19:22

वो इंसान तो बड़ा अच्छा था,
लेकिन वक़्त ही बेवफ़ा निकला।

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28 JUN 2020 AT 19:38

बहुत कर ली ख्वाहिशें
अब हक़ीक़त से रूबरू होते हैं।
जो मिला, वो हैं सबसे खूबसूरत
उसी से मुक्कमल जहां करते हैं।

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4 JUN 2020 AT 12:48

तुम्हारे न होने से,
बंद किताबों के पन्नें
कभी न खुलेंगे...

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