"सच्चाई"
दोस्त अपेक्षा से अधिक डर के तो देखो
सामर्थ्यवान के बगल से गुजर के तो देखो
तुम्हारी सारी अच्छाईयां भूल जाएंगे लोग,
एक छोटी सी गलती कर के तो देखो
ये जो तालियां बज रही है तेरी तरक्की पर
कल को एक पायदान नीचे उतर के तो देखो
बहुत गुमान हो अगर अपने साथ वालो पे,
तो कभी झूठी मुशिबत मे पड़ के तो देखो
सब तुम्हे अपने परिवार का हिस्सा मानते है,
कभी खुद के परिवार से बिछड़ के तो देखो-
ज़िंदगी की धूप में
बारिश हुई, अब लौट आ
अर्से से तू है भटक रहा
बेख़बर तू अब लौट आ
दोस्तों की ग़फ़लतें
मत आज़मा, अब लौट आ
आइने सा कोई रब
दिखता नहीं, अब लौट आ-
खुद से नाखुश ,
दुनियाँ से रूबरू हूँ मैं।
एक शक्श की तलाश मुझको,
हजारों की आरजु हूँ मैं।
जो मेरी प्यास हो गया है,
वो किसी का ख़ास हो गया है।
जानकर हाल जिन्दगी के,
जिन्दा दिल हताश हो गया है।
मगर कभी कभी
खामोश पल, बारिशें
चाय की प्याली, तेरी यादें।
मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ,
क्या यही मेरी जागीर हैं।-
अब ना ढूँढना मुझको...
ढूँढे से मिल नही पाऊंगा।।
लेकिन...
ढूँढ सको तो ढूँढना मुझको,
पुरानी किताबों के पन्नो में
खामोशियों के वीरान जंगलों में
उलझनों के दलदल में
मेरे इन अल्फाजो में..-
फकत ये नहीं कि दर्द बस गया,
वो आखिरी तक मुकाम ढूँढेगा।।
पागल, टूटी दीवारों की जानिब,
खुरच खुरच,उसका नाम ढूँढेगा।।
ये एक बस्ती है, बंजारे।-
किस्से इसके हजार है
अनपढे़ अनसुलजे सवालात हैं
पढ़ पाओ तो लाजवाब है
दूब जाओं तो आशूओं का शागर है
रात ये एक किताब है...
हर याद का हिसाब है
सवालों की बरसात है
जिक्र ही तेरा फसाना है
ये ही मेरा खजाना है
रात ये एक किताब है
इसमें ना जाने कोई बात है-
रात दुश्मन बन जाती है
मन ही मन बात कुछ रह जाती है
रातों को नींद बहुत सताती है
आँखों से कोसो दूर चली जाती है
सपनों को पुरा करने की जब बारी आती है
ख्वाबो से ये बैर लगा बैठती है...
चाँद सितारों से ये बात करवाती है
बीती हुई जिन्दगी पे ये फिर ले आती है
रात होते होते जिन्दगी थम सी जाती है
ना चाहते हुये भी ये रात दुश्मन बन जाती है-
पथिक तूफ़ानों में चलने का आदी बनो
अपनी मंज़िल को और आसान करो
उठो पथिक तुम्हें जागना होगा.
अपनी इस तंत्रा को तोडना होगा..
मंजिल के विलम्ब से परिचय करना होगा..
राह के इन जयचदों को त्यागकर..
अभीष्ट और निर्णायक द्वंद्व करना होगा.-
शब्दों की दुनिया में
पता नही कहा था...
और कहा जा रहा हूं ?
बस उलझता जा रहा हूं-