बड़ी अजब है तेरे शहर की तंग गलियां
कौन मुसाफिर यँहा भटका निशान का क्या पता
साँसे फूल गयी ये सफ़र करते करते
कब मिलेगी साहिल-ए-मंजिल क्या पता
सुलग-सुलग कर राख कर दिया खुद को
उन्हे खबर भी है इस उल्फ़त की क्या पता
दिल के दरीचे में बेतहाशा खामोशी पँहुची है
चिखते अहसासों की होती है आवाज क्या पता
जरा सोचो कितनी घुटन दफ़न की है सीने में
कौन लिये फिरता यँहा सीने में तूफ़ान क्या पता
यकीन करना मुश्किल है 'रूचि' आज की दुनिया पर
कब कौन यँहा पीठ पर खंजर घोप दे क्या पता
-